Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
सम्यग्दृष्टि की उज्ज्वल परिणाम
सम्यग्दृष्टि जीव की गति अर्थात् उसकी परिणति का प्रवाह सिद्धगति की ओर ही जाता है; उसके परिणाम उज्ज्वल होते हैं। आनन्दमय मोक्षगति को साधते-साधते बीच में साधकभाव के साथ में उसे उदयभाव भी ऐसे ही होते हैं कि जिनसे संसार की उत्तम गति में ही अवतरित हो। यद्यपि उसके सम्यक्त्वादि साधकभाव तो उस गति इत्यादि सर्व उदयभावों से अत्यन्त भिन्न वर्तते हैं, और सिद्धपद की ओर ही उसकी सम्यक्गति शीघ्रता से चल रही है परन्तु सम्यक्त्व के साथ उच्च पुण्य का कैसा मेल होता है, वह यहाँ बताया है। वरना तो सम्यग्दृष्टि स्वयं को राग से भी भिन्न अनुभव करता है, वहाँ पुण्य या संयोग की क्या बात?
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति चारों गति के जीवों को हो सकती है। इन्द्र या मनुष्य, तिर्यंच या नरक-चारों गति में पात्र जीव, सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकता है। नरक में भी असंख्यात सम्यग्दृष्टि जीव हैं। सम्यग्दर्शनसहित मरकर जीव कहाँ उत्पन्न होता है ? कहाँ नहीं उत्पन्न होता वह निम्नानुसार है
* देवगति में से अवतरित होकर समकिती जीव उत्तम मनुष्य में ही आता है, अन्यत्र नहीं जाता। ___ * नरक में से मरकर समकिती जीव उत्तम मनुष्य में ही आता है, अन्यत्र नहीं जाता।
* तिर्यंच में से मरकर समकिती जीव, वैमानिक स्वर्ग में ही जाता है, अन्यत्र नहीं जाता।
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