Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
करने का उपदेश है । हे जीवों! ऐसी सरस सम्यग्दर्शन की महिमा सुनकर अब तुम जागो, जागकर चेतो! सावधान होओ! और ऐसे पवित्र सम्यग्दर्शन का स्वरूप समझकर अपने पुरुषार्थ द्वारा उसे धारण करो। उसमें प्रमाद मत करो। इस दुर्लभ अवसर में सम्यग्दर्शन ही प्रथम कर्तव्य है । बारम्बार ऐसा अवसर प्राप्त होना कठिन है। सम्यग्दर्शन नहीं किया तो इस दीर्घ संसार में जीव का कहीं पता लगे, ऐसा नहीं है। इसलिए हे सयाने समझदार जीवों! तुम उद्यम द्वारा शीघ्र सम्यग्दर्शन को धारण करो। सावधान होकर तुम्हारी स्वपर्याय को सम्हालो! उसे अन्तर्मुख करके सम्यग्दर्शनरूप करो। तुम्हारी पर्याय के कर्ता तुम हो; भगवान तुम्हारी पर्याय के देखनेवाले हैं परन्तु कहीं करनेवाले नहीं हैं। कर्ता तो तुम ही हो; इसलिए तुम स्वयं आत्मा के उद्यम द्वारा शीघ्र सम्यग्दर्शन-पर्यायरूप परिणमित होओ।
अपना आत्मा क्या है?-उसे जाने बिना अनन्त बार जीव, स्वर्ग में गया परन्तु वहाँ किंचित् भी सुख प्राप्त नहीं हुआ, संसार में ही परिभ्रमण किया। सुख का कारण तो आत्मज्ञान है। अज्ञानी को करोड़ों जन्म के तप से जो कर्म खिरते हैं, वे ज्ञानी को आत्मज्ञान द्वारा एक क्षण में खिर जाते हैं । इसलिए कहा है कि 'ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारण' तीन लोक में सम्यग्दर्शन के समान सुखकारी दूसरा कोई नहीं है। आत्मा के सम्यग्दर्शन-ज्ञान बिना जीव को सुख का अंश भी अनुभव में नहीं आता, अर्थात् धर्म नहीं होता। इसलिए हे समझदार जीवों! तुम यह सुनकर, समझकर चेतो और शीघ्र सम्यग्दर्शन धारण करके आत्महित करो। यह तुम्हारे हित का अवसर आया है। तुम कोई मूर्ख नहीं, तुम तो
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