Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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कोई प्रयोजन उन्हें नहीं रहा है। महापुरुषों का यह स्वभाव ही है कि मात्र अनुग्रहबुद्धि से भव्य जीवों को मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं।
वज्रजंघ का जीव विचार कर रहा है - अहो! मेरा धन्य भाग्य कि मुनि भगवन्त मुझ पर अनुग्रह करके यहाँ पधारे और मुझे सम्यक्त्व प्रदान किया। कहाँ वे अत्यन्त निस्पृह साधु और कहाँ हम! कहाँ तो उनका विदेहधाम! और कहाँ हमारी भोगभूमि ! उन निस्पृह मुनिवरों का भोगभूमि में आना और यहाँ के मनुष्यों को उपदेश देना, ये कार्य सहज नहीं, तथापि उन मुनिवरों ने यहाँ पधारकर मुझ पर महान उपकार किया है।
जिस प्रकार इन चारणऋद्धिधारक मुनिवरों ने दूर से आकर हमें धर्म प्राप्त कराकर हम पर महान उपकार किया है, उसी प्रकार महापुरुष धर्म प्राप्त कराकर दूसरों का उपकार करने में महा प्रीति रखते हैं। तप से जिनका शरीर कृष हो गया है, ऐसे वे दोनों तेजस्वी मुनि भगवन्त अभी भी मेरी नजर के सामने ही तैरते हैं, मानों कि
अभी भी वे मेरे सन्मुख ही खड़े हैं... मैं उनके चरण-कमल में प्रणाम करता हूँ, और वे दोनों मुनिवर उनका कोमल हाथ मेरे
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