Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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वस्तु का लाभ प्राणियों को महान सन्तोष उत्पन्न करता ही है। जैसे कोई राजकुमार सूत्र में पिरोयी हुई मनोहर माला प्राप्त करके अपनी राज्यलक्ष्मी के युवराजपद पर स्थित होता है; इसी प्रकार यह वज्रजंघ का जीव भी जैन सिद्धान्तरूपी सूत्र में पिरोयी हुई मनोहर सम्यग्दर्शनरूपी माला प्राप्त करके मोक्षरूपी राज्य सम्पदा के युवराज पद पर स्थित हुआ, तथा विशुद्ध पुरुषपर्याय पाकर मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा करती हुई सती आर्या भी सम्यक्त्व की प्राप्ति से अत्यन्त सन्तुष्ट हुई। पूर्व में कभी भी जिसकी प्राप्ति नहीं हुई थी, ऐसे सम्यग्दर्शनरूपी रसायन को आस्वादन कर, अर्थात् चैतन्य के अतीन्द्रिय आनन्द को अनुभव कर वे दोनों दम्पति, कर्म नष्ट करनेवाले जैनधर्म में अतिशय दृढता को प्राप्त हुए।
इस प्रकार ऋषभदेव का आत्मा पूर्व में सातवें भव में भोगभूमि में सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ... भविष्य में भरतक्षेत्र के आदि तीर्थंकर होकर वे धर्मतीर्थ की आदि करनेवाले हैं-ऐसे आदिनाथ प्रभु के
आत्मा में धर्म की आदि हुई। उन धर्म की शुरुआत करनेवाले धर्मात्मा को हमारा नमस्कार हो। ___ वज्रजंघ और श्रीमती के साथ-साथ, पूर्वभव के सिंह, बन्दर, नेवला, और सूअर ये चार जीव - कि जो आहारदान का अनुमोदन करके उने साथ ही भोगभूमि में उत्पन्न हुए थे, वे भी गुरुदेव प्रीतिकर मुनिराज के चरण-कमल का आश्रय लेकर सम्यग्दर्शनरूपी अमृत को प्राप्त हुए। आनन्दसूचक चिह्नों द्वारा जिन्होंने अपने मनोरथ की सिद्धि प्रगट की है, ऐसे उन दोनों दम्पति को वे दोनों मुनिवर बहुत देर तक धर्म प्रेम से बारम्बार देखते रहे-कृपादृष्टि करते रहे और वह वज्रजंघ का जीव पूर्वभव के प्रेम के कारण
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