Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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(श्रावकपना, मुनिपना इत्यादि) नहीं होती। सीढ़ी का एक सोपान भी जिससे नहीं चढ़ा जाता, वह पूरी सीढ़ी चढ़कर मोक्ष में कहाँ से पहुँचेगा? सम्यग्दर्शन के बिना समस्त क्रियायें अर्थात् शुभभाव, वह कहीं धर्म की सीढी नहीं है। वह तो संसार में उतरने का मार्ग है। जिसने राग को मार्ग माना, वह तो संसार के मार्ग में है। राग के मार्ग से कोई मोक्ष में नहीं जाया जाता। मोक्ष का मार्ग तो स्वानुभवसहित सम्यग्दर्शन है। आत्मा की पूर्ण शुद्ध वीतरागदशा, वह मोक्षरूपी आनन्दमहल; आंशिक शुद्धतारूप सम्यग्दर्शन, वह मोक्षमहल की प्रथम सीढ़ी; आंशिक शुद्धता बिना पूर्ण शुद्धता के मार्ग में कहाँ से जाया जा सकेगा? अशुद्धता के मार्ग में चलने से कहीं मोक्षनगर नहीं आता।
मोक्ष क्या है?-मोक्ष वह कोई त्रिकाली द्रव्य या गुण नहीं, परन्तु वह जीव के ज्ञानादि गुणों की पूर्ण शुद्ध अवस्थारूप कार्य है; उसका पहला कारण सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन का लक्ष्य पूर्ण शुद्ध आत्मा है, उस पूर्णता के ध्येय से पूर्ण के ओर की धारा शुरु होती है; बीच में रागादि हों, व्रतादि शुभभाव हों परन्तु सम्यग्दृष्टि उन्हें आस्रव जानता है; वे कोई मोक्ष की सीढ़ी नहीं है । सम्यक्ता कहो या शुद्धता कहो; ज्ञान-चारित्र इत्यादि की शुद्धि का मूल सम्यग्दर्शन है। शुभराग, वह कहीं धर्म की सीढ़ी नहीं है। राग का फल सम्यग्दर्शन नहीं और सम्यग्दर्शन का फल शुभराग नहीं; दोनों चीजें ही भिन्न हैं।
आत्मा शान्त-वीतरागस्वभाव है; वह पुण्य द्वारा-राग द्वारा, व्यवहार द्वारा प्राप्त नहीं होता, अर्थात् अनुभव में नहीं आता परन्तु
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