Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग-5
होता है। ऐसे जीव को उपशमसम्यक्त्व होता है, फिर क्षयोपशम और क्षायिकसम्यक्त्व होता है । पश्चात् अल्प काल में वह संसार -परिभ्रमण से छूटकर सम्यक्त्व के प्रताप से अपूर्व मोक्षसुख को पाता है। इसलिए मोक्षार्थी को ऐसे सम्यक्त्व की भावना भाना चाहिए और सर्व उद्यम से उसे प्रगट करना चाहिए।
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सम्यग्दर्शन की अद्भुत ताकत
* मैं जहाँ जाऊँगा, वहाँ सम्यक्त्व के प्रताप से सुख को ही भोगूँगा ।
* सम्यग्दर्शन ने तो मोक्ष का सुख चखाया, वहाँ अब दुःख कैसा ?
भगवान श्री कुन्दकुन्दस्वामी, अष्टप्राभृत में कहते हैं कि श्रावकों को पहले तो सुनिर्मल सम्यक्त्व प्रगट करना चाहिए। अत्यन्त निर्मल और मेरु समान निष्कम्प ऐसा सम्यग्दर्शन प्रगट करके निरन्तर उसका ध्यान करना । चल-मल और अगाढ़ दोषरहित ऐसा अचल निर्मल और दृढ़ सम्यग्दर्शन प्रगट करके, दुःख के क्षय के लिये उसे ही ध्यान में ध्याना । जैसे महा संवर्तक हवा से भी मेरुपर्वत डिगता नहीं है; उसी प्रकार जगत की चाहे जैसी प्रतिकूलता से भी सम्यग्दृष्टि का श्रद्धान डिगता नहीं है; देव परीक्षा करने आवें तो भी सम्यक्त्व से डिगे नहीं । श्रावक को ऐसा दृढ़ सम्यक्त्व ग्रहण करके निर्विकल्प आनन्द का बारम्बार अनुभव करना-जिससे दुःख का क्षय हो ।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.