Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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अन्य किसी की महिमा उसे भासित नहीं होती; इसलिए उसे शरीरादि सम्बन्धी मद नहीं होता। इस प्रकार आठ गुणसहित और आठ मद इत्यादि सर्व दोषरहित शुद्ध सम्यक्त्व द्वारा अपने आत्मा की साधना में आगे बढ़ते-बढ़ते वह धर्मात्मा अपने वांछित अनन्त सुखमय मोक्षधाम को अल्प काल में प्राप्त करता है। उन्हें हमारा नमस्कार हो।
[एक मुमुक्षु]
तू शूरवीर होकर मोक्षपंथ में आ!
(प्रभु का मार्ग है शूरों का) श्रीगुरु शिक्षा देते हैं कि हे भव्य! आत्मा के अनुभव के लिये सावधान होना... शूरवीर होना... जगत की प्रतिकूलता देखकर कायर नहीं होना... प्रतिकूलता के सामने मत देखना, शुद्ध आत्मा के आनन्द के समक्ष देखना। शूरवीर होकर-उद्यमी होकर आनन्द का अनुभव करना। हरि का मारग है शूरों का...' वे प्रतिकूलता में या पुण्य की मिठास में कहीं नहीं अटकते; उन्हें एक अपने आत्मार्थ का ही काम है। वे भेदज्ञान द्वारा आत्मा को बन्धन से सर्वथा प्रकार से भिन्न अनुभव करते हैं। ऐसा अनुभव करने का यह अवसर है-भाई! उसमें शान्ति से तेरी चेतना को अन्तर में एकाग्र करके त्रिकाली चैतन्य प्रवाहरूप आत्मा में मग्न कर...
और रागादि समस्त बन्धभावों को चेतन से भिन्न अज्ञानरूप जान। इस प्रकार सर्व प्रकार से भेदज्ञान करके तेरे एकरूप शुद्ध आत्मा को शोध। मोक्ष को साधने का यह अवसर है।
अहो ! वीतराग का मार्ग... जगत् से अलग है। जगत् का भाग्य है कि सन्तों ने ऐसा मार्ग प्रसिद्ध किया है। ऐसा मार्ग प्राप्त करके, हे जीव! भेदज्ञान द्वारा शुद्ध आत्मा को अनुभव में लेकर तू मोक्षपंथ में आ।
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