Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
142]
[सम्यग्दर्शन : भाग-5
नहीं, अल्पज्ञता नहीं; मैं पूर्णानन्द से भरपूर भगवान हूँ-ऐसे सत्स्वभाव की झंकार करता हुआ जो जागृत हुआ, उसकी शूरवीरता छुपी नहीं रहती। _ 'मैं परमात्मा हूँ'-ऐसे स्वसन्मुख होकर जो अपना अनुभव करता है, वही दूसरे परमात्मा को सच्चे स्वरूप से पहिचान सकता है। अपने में रागरहित परमात्मपना देखे बिना दूसरे परमात्मा के स्वरूप की सच्ची पहिचान नहीं हो सकती। धर्मी जीव सभी विकल्पों से भिन्न पड़कर, सर्व गुण से पूरा परमात्मा मैं हूँ-ऐसे उपयोग को अन्तर में जोड़कर आत्मा को परमात्मस्वरूप अनुभव करता है। मैं रागी-द्वेषी'-ऐसे स्वरूप से आत्मा को चिन्तवन करने से परमात्मपना प्रगट नहीं होता परन्तु मैं राग-द्वेषी नहीं; मैं तो चैतन्यभाव से पूर्ण परमात्मा हूँ-ऐसे आत्मा को परमात्मस्वरूप से चिन्तवन करने से परमात्मपना प्रगट होता है। वीतरागमार्ग का साधक धर्मी जीव, लोग मुझे क्या कहेंगे-यह देखने को रुकता नहीं है, लोगों में बड़े माने जानेवाले लोग या विद्वान दूसरा कहे, इससे वह शंका में नहीं पड़ता; मात्र शास्त्र के विकल्प में नहीं अटकता परन्तु शास्त्रों ने बताया हुआ विकल्पों से पार अपने चैतन्यतत्त्व को प्रतीति में लेकर अपने अन्तर में चिन्तवन करता है।
मैं सर्वज्ञस्वभाव से भरपूर भगवान हूँ-ऐसे अनुभव के जोर से वीर के पंथ में मोक्षमार्ग साधने निकला वह साधक जीव अफरगामी है, वह वापस नहीं मुड़ता। मैं विकल्प की जाति का नहीं, मैं तो सिद्ध परमात्मा की जाति का हूँ—ऐसे अपने आत्मा को सिद्धस्वरूप ध्याते हुए साधक के अन्तर में परम आनन्दरूपी अमृतधारा बहती
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.