Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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अशुभराग भी होता है, तथापि उस समय स्वतत्त्व को उन सबसे भिन्न ज्ञायकभावरूप ही जानता है । परिवार और समाज के बीच रहता हुआ दिखने पर भी, वह समाज या परिवार के साथ आत्महित का सम्बन्ध किंचित भी नहीं मानता। अरे! जहाँ पुण्य की भी रुचि नहीं, वहाँ अन्य की क्या बात ! बाहर में भले पुण्यसामग्री के ढेर हों या किसी कारणवश महाप्रतिकूलता आ पड़े, तथापि दोनों से पार अन्दर की चैतन्य शान्ति छूटती नहीं है । वह जानता है कि जगत का कोई पदार्थ मेरी शान्ति का दातार या हनन करनेवाला नहीं है । मेरे सुख का वेदन मुझे अन्तर में से आया है; वह किसी संयोग में नहीं छूटेगा क्योंकि वह शान्ति का वेदन कहीं बाहर से नहीं आया । जितनी बाह्य वृत्ति जाती है, उतना दुःख है । इस प्रकार दुःख को दुःखरूप जानता है और उससे भिन्न अन्तर आत्मा को पकड़कर उसके आश्रय से अन्तर में आनन्द - सुख का स्वाद भी लिया ही करता है।
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• ऐसी अपूर्व अन्तरदशासहित उत्तम विचारधारा तथा उत्तम वर्तन सम्यग्दृष्टि जीवों का होता है..... उनका जीवन
धन्य है । •
(एक मुमुक्षु)
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Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.