Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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जाये, वैसे उसका जीवन अशान्ति में से छूटकर परम शान्त बन जाता है। कदाचित् बाहर के जीव यह देख नहीं सकते परन्तु उसकी अन्दर की आत्मतृप्ति, उसका चैतन्य प्राप्ति का परम सन्तोष
और सतत् प्रवाहित मोक्ष साधना, उसे तो वह स्वयं अपने स्वसंवेदन से सदा जानता है। उसका सम्पूर्ण आत्मा उलट-पुलट हो जाता है। अहा! उस अद्भुत दशा को वाणी से वर्णन करना कठिन है।
मुमुक्षु लोगों का सद्भाग्य है कि अभी ऐसे कलयुग में भी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का पंथ बतलानेवाले, भावी तीर्थंकर सन्त मिले हैं, जिन्होंने अज्ञान अंधकार में भटकते हुए जीवों को ज्ञान का प्रकाश दिया है; मार्ग भूले हुए जीवों को सत्य मार्ग बतलाया है। दुनिया में प्रचलित कुदेव-कुगुरु सम्बन्धी अनेक भ्रम और कुरिवाजों में से अन्धश्रद्धा छुड़ायी है और सीधी सड़क जैसा सत्य मार्ग निःशंक से बतलाया है। उनके प्रताप से आत्महित के सच्चे मार्ग
को पहिचानकर अनेक जीव आत्मसन्मुख हुए हैं, तो कोई-कोई जीव ऐसे भी हैं कि जिन्हें सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ है।
सम्यग्दर्शन होने के पश्चात् आत्मसन्मुख जीव की अन्तरदशा तथा विचारधारा पहले की अपेक्षा अत्यन्त भिन्न प्रकार की होती है। वह स्वयं को राग से भिन्न चैतन्य की अनुभूतिस्वरूप मानता है। वह जानता है कि मेरा चैतन्यस्वरूप ही जगत् में सर्वश्रेष्ठ है। आत्मा, देह से भिन्न एक महान चैतन्यतत्त्व है; आत्मा का स्वरूप इन्द्रियों से अथवा राग से नहीं मापा जा सकता। आत्मा शुद्धबुद्ध-निर्विकल्प-उदासीन-ज्ञान-आनन्दस्वरूप है। शुभाशुभराग का सेवन मैं अनादि से करता था परन्तु उसरूप मेरा आत्मा हो नहीं गया था; मेरा आत्मा तो सुख का भण्डार चैतन्य राजा है; उसे
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