Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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समयसार का मङ्गलाचरण सिद्ध के लक्ष्य से शुरु हुआ अपूर्व साधकभाव
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समयसार की पहली गाथा में आचार्यदेव कहते हैं कि अहो सिद्धभगवन्तों! पधारो... पधारो... पधारो... ! अपने ज्ञान में मैं निर्विकल्प अनुभूति के बल से सिद्ध भगवन्तों को पधराता हूँ । जिस ज्ञानपर्याय में सिद्ध प्रभु विराजे, उस ज्ञानपर्याय में राग नहीं रह सकता। राग से पृथक् पड़ी मेरी ज्ञानपर्याय में इतना फैलाव है कि उसमें अनन्त सिद्ध भगवन्तों को समाहित कर प्रतीति में लेता हूँ। अतीन्द्रिय आनन्दरूप हुए अनन्त सिद्धों को आमन्त्रण करनेवाले साधक का आत्मा भी इतना ही बड़ा है - ऐसे आत्मा के लक्ष्य से समयसार की अपूर्व शुरुआत होती है।
—ऐसे समयसार का श्रोता भी अपूर्वभाव से श्रवण करते हुए कहता है कि हे प्रभो! जैसे आप स्वानुभूति के बल से सिद्ध भगवन्तों को आत्मा में स्थापित करके निजवैभव से शुद्धात्मा दिखलाते हो, वैसे हम भी हमारे ज्ञान में सिद्धप्रभु को पधराकर और ज्ञान में से राग को निकालकर, स्वानुभूति के बल से आपके द्वारा बताये हुए शुद्धात्मा को प्रमाण करते हैं। - इस प्रकार गुरु-शिष्य की सन्धि के अपूर्वभाव से समयसार सुनते हैं । •
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