Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
प्रश्न : हे गुरुदेव! सम्यग्दर्शन की विधि तो आपने समझायी, परन्तु यह समझने के पश्चात् परिणति की गुलाँट कैसे मारना?
उत्तर : यथार्थ विधि समझ में आये, वहाँ परिणति गुलाँट खाये बिना नहीं रहती। विकल्पजाति और स्वभावजाति, इन दोनों को भिन्न जानते ही परिणति, विभाव में से पृथक् पड़कर स्वभाव में तन्मय होती है। विधि को सम्यकप से जानने का काल और परिणति को गुलाँट खाने का काल-दोनों एक ही हैं। विधि जाने, फिर उसे सिखाना नहीं पड़ता कि तू ऐसा कर । जो विधि जानी है, उस विधि से ज्ञान अन्तर में ढलता है। सम्यक्त्व की विधि को जाननेवाला ज्ञान स्वयं कोई राग में तन्मय नहीं है; स्वभाव में तन्मय है और ऐसा ही ज्ञान, सच्ची विधि को जानता है। राग में तन्मय वर्तता ज्ञान, सम्यक्त्व की सच्ची विधि को नहीं जानता।
पहले आत्मा के स्वभाव से सम्बन्धित अनेक प्रकार के विचार होते हैं, उनके द्वारा स्वभाव-महिमा को पुष्ट करता जाय – परन्तु उस समय उसे स्वभाव को पकड़ने के लिये ज्ञान की महत्ता है, वह ज्ञान, विकल्प से आगे हटकर स्वभाव की ओर अन्दर ढलता है। वहाँ कोई मैं शुद्ध' इत्यादि जो विकल्प हैं, वे अनुभव की ओर झुकने का कारण नहीं है, ज्ञान ही विकल्प से भिन्न होकर अनुभव करता है। * चैतन्य की स्फुरणा होते ही परभाव छूट जाते हैं *
प्रश्न : असंख्यात प्रकार के परभावों से छूटने के लिये क्या करना? एक परभाव से बचते हैं, वहाँ दूसरा परभाव घुस जाता है, तो क्या करना?
उत्तर : स्वभाव में प्रवेश करने पर समस्त परभाव एकसाथ
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