Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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जिस वन में यह हाथी रहता था, उसी वन में यात्रासंघ ने पड़ाव डाला; इसलिए वहाँ बड़ा कोलाहल होने लगा। निर्जन वन में इतने अधिक लोग और वाहन, हाथी ने कभी नहीं देखे थे; इसलिए मनुष्यों को देखकर हाथी घबराया और पागल होकर चारों ओर घूमने लगा। जो चपेट में आता उसे मारने लगता। लोग तो चीखपुकार करके चारों ओर भागने लगे। हाथी ने किसी को पैर के नीचे कुचल डाला तो किसी को सूंड से पकड़कर ऊँचे उछल दिया; रथ को तोड़ डाला और वृक्षों को उखाड़ दिया। बहुत से लोग भयभीत होकर मुनिराज की शरण में पहुँच गये। ___ पागल हाथी चारों ओर घूमता-घूमता जहाँ अरविन्द मुनिराज विराजमान थे, उस ओर किलकारी करता हुआ दौड़ा। लोगों को भय लगा कि अरे! यह हाथी, मुनिराज का क्या कर डालेगा?
मुनिराज तो शान्त होकर बैठे हैं। उन्हें देखते ही सूंड ऊँची करके हाथी उनकी ओर दौड़ा... परन्तु....
–परन्तु मुनिराज के हृदय में एक चिह्न देखते ही वह हाथी एकदम शान्त हो गया... उसे लगा कि अरे ! इन्हें तो मैंने कहीं देखा है... यह मेरे कोई परिचित और हितैषी हों, ऐसा मुझे लगता है। ऐसे विचार में हाथी तो एकदम शान्त होकर खड़ा रहा; उसका पागलपन मिट गया और मुनिराज के सामने सूंड झुकाकर बैठ गया। __ लोग तो आश्चर्यचकित हो गये कि अरे! मुनिराज के समीप आते ही यह पागल हाथी अचानक शान्त कैसे हो गया! यह प्रसंग देखकर चारों ओर से लोग वहाँ मुनिराज के समीप दौड़े आये। मुनिराज ने अवधिज्ञान द्वारा हाथी के पूर्वभव को जान लिया और
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