Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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महावीर भगवान के जीव को सिंहपर्याय में सम्यग्दर्शन
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महावीर भगवान का जीव, पूर्व में आत्मज्ञान प्राप्त करने से पहले तीव्र मिथ्यात्व के सेवन से समस्त अधोगति में जन्म-मरण कर-करके अत्यन्त ही थका और खेदखिन्न हुआ । अन्त में एक बार राजगृही में ब्राह्मणपुत्र हुआ। वह वेदपुराण में परांगत था, परन्तु सम्यग्दर्शनरहित होने से उसका ज्ञान और तप सब व्यर्थ था। वह मरकर स्वर्ग में गया, पश्चात् राजगृही में विश्वनन्दि नामक राजपुत्र हुआ, जैनदीक्षा लेकर निदानसहित मरणकर स्वर्ग में गया और वहाँ से बाहुबलीस्वामी के वंश में त्रिपुष्ट नाम का अर्धचक्री वासुदेव होकर, आर्तध्यान से मरकर सातवें नरक गया । अरे ! उस नरक के घोर दुःखों की क्या बात ! संसार-भ्रमण में भ्रमते जीव ने अज्ञान से कौन से दुःख नहीं भोगे हों !! महाकष्ट से असंख्यात वर्ष की वह घोर नरक यातना का भोग पूर्ण करके वह जीव, गंगा किनारे सिंहगिरि पर सिंह हुआ... वापस ज्वाजलयमान अग्नि जैसे पहले नरक में गया... और वहाँ से निकलकर जम्बूद्वीप के हिमवन पर्वत पर दैदीप्यमान सिंह हुआ... महावीर का जीव इस सिंहपर्याय में आत्मलाभ को प्राप्त हुआ । किस प्रकार प्राप्त हुआ ? यह प्रसंग देखते हैं
एक बार वह सिंह, क्रूररूप से हिरण को फाड़कर खा रहा था। तब आकाशमार्ग से जा रहे दो मुनियों ने उसे देखा और 'यह जीव भरतक्षेत्र में अन्तिम तीर्थंकर होनेवाला है' – ऐसे विदेह के तीर्थंकर के वजन का स्मरण हुआ; इसलिए दयावश आकाशमार्ग से नीचे
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