Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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मुनिराज ने प्रसन्न होकर, हाथ उठाकर, हाथी को आशीर्वाद दिया।
संघ के हजारों लोग यह दृश्य देखकर बहुत प्रसन्न हुए। एक क्षण में यह सब क्या हो रहा है, यह सब आश्चर्य से देखने लगे। __आत्मा का ज्ञान होने पर हाथी तो बहुत ही भक्तिभाव से मुनिराज का उपकार मानने लगा... अरे! पूर्व में आत्मा के भान बिना आर्तध्यान करने से मैं पशुदशा को प्राप्त हुआ, परन्तु अब इन मुनिराज के प्रताप से मुझे आत्मभान हुआ है और उस आत्मा के ध्यान द्वारा अब मैं परमात्मा होऊँगा-ऐसा विचारकर वह हाथी, लँड झुकाकर मुनिराज को नमस्कार कर रहा था। अपूर्व आत्मलाभ से वह अत्यन्त तृप्त-तृप्त हुआ था।
(देखो तो सही, बन्धुओं! अपना जैनधर्म कैसा महान है कि इसके सेवन से एक पशु भी आत्मज्ञान करके परमात्मा बन सकता है! प्रत्येक आत्मा में परमात्मा होने की सामर्थ्य है-ऐसा अपना जैनधर्म बताता है। वाह... जैनधर्म... वाह...!) ___ मुनिराज से सम्यग्दर्शन का स्वरूप समझकर हाथी के साथसाथ दूसरे भी बहुत से जीव, सम्यग्दर्शन को प्राप्त हुए। जैसे तीर्थंकर अकेले मोक्ष में नहीं जाते, दूसरे बहुत से जीव भी उनके साथ मोक्ष प्राप्त करते हैं; इसी प्रकार यहाँ तीर्थंकर का आत्मा सम्यग्दर्शन प्राप्त करने पर, दूसरे बहुत से जीव भी उनके साथ सम्यग्दर्शन को प्राप्त हुए और चारों ओर धर्म की जय-जयकार हो गयी। थोड़ी देर पहले जो हाथी पागल होकर हिंसा करता था, वही हाथी अब आत्मज्ञानी होकर शान्त अहिंसक बन गया और मुनिराज से पुनः धर्म सुनने के लिये आतुरता से उनके सन्मुख देखता रहा। बहुत से श्रावक भी उपदेश सुनने के लिये बैठे थे।
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