Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
तत्पश्चात् सुखपूर्वक बिराजमान उन दोनों मुनिवरों के प्रति विनयपूर्वक वज्रजंघ ने इस प्रकार पूछा : हे भगवान! आप कहाँ बसनेवाले हैं ? आप कहाँ से यहाँ पधारे हैं ? आपके आगमन का कारण क्या है ? वह कृपा करके कहो। हे प्रभो! आपको देखते ही मेरे हृदय में सौहार्दभाव उमड़ रहा है, मेरा चित्त अतिशय प्रसन्न हो रहा है और मुझे ऐसा लगता है कि मानो आप मेरे पूर्व परिचित बन्धु हो! प्रभो! इस सबका क्या कारण है ?-वह अनुग्रह करके मुझे कहो।
इस प्रकार वज्रजंघ का प्रश्न पूर्ण होते ही बड़े मुनिराज उसे इस प्रकार उत्तर देने लगे : हे आर्य! तू मुझे उस स्वयंबुद्ध मन्त्री का जीव जान कि जिसके द्वारा तू महाबल के भव में पवित्र जैनधर्म का प्रतिबोध प्राप्त हआ था। उस भव में तेरे मरण के बाद मैंने जिनदीक्षा धारण की थी और संन्यासपूर्वक शरीर छोड़कर सौधर्मस्वर्ग का देव हुआ था; तत्पश्चात् इस पृथ्वी लोक में विदेहक्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी में प्रीतिकर नामक राजपुत्र हुआ हूँ और ये (दूसरे मुनि) प्रीतिदेव मेरे छोटे भाई हैं। हम दोनों भाईयों ने स्वयंप्रभ जिनेन्द्र के समीप दीक्षा लेकर पवित्र तपोबल से अवधिज्ञान तथा
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