Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
व्यवहारनय नहीं देखता; आत्मा को देखने के लिये तो अतीन्द्रिय -दृष्टिरूप शुद्धनय चाहिए। ___ आत्मा का जीवन तो सम्यग्दर्शन में है; राग में या देह में कहीं आत्मा का जीवन नहीं है। भाई ! तेरा जीवन जीना तुझे नहीं आया। तेरा वास्तविक स्वरूप बतलाकर सच्चा जीवन जीने की विधि तुझे सन्त बतलाते हैं। पहले तो चेतन से अन्य जो परभाव, उन सबको शुद्धनय द्वारा तुझसे भिन्न कर और सर्व परभाव से रहित एक भूतार्थ शुद्धात्मा को देख। शुद्धात्मा पर दृष्टि रखकर, जो निर्मल ज्ञानआनन्दधाम में पवित्र जीवन है, वह आत्मा का जीवन है। उस जीवन में अनन्त गुणों की शुद्धता प्रगट अनुभव में आती है।
जहाँ तू है, वहाँ राग और शरीर नहीं; जहाँ शरीर और राग है, वहाँ तू नहीं। तू तेरे चैतन्यधाम में है; चेतन में राग नहीं और रागादि में चेतन नहीं। शरीर तो अचेतन है, उसमें जीव कैसा? और जीव में शरीर कैसा?
सम्यग्दर्शन कैसे प्राप्त हो और उसकी प्राप्ति होने पर, आत्मा में क्या होता है ?-उसकी यह बात है। अहो! यह आत्मा के हित की मीठी-मधुर बात है। ऐसा परम वीतरागी सत्य अभी बाहर आया है और हजारों जीव जिज्ञासा से यह सुनते हैं। ऐसे सत्य का पक्ष करनेयोग्य है। आत्मा के स्वभाव की यह सत्य बात लक्ष्य में लेकर उसका पक्ष करनेयोग्य है और फिर बारम्बार उसके अभ्यास द्वारा उसमें दक्ष होकर, अनुभव द्वारा प्रत्यक्ष करनेयोग्य है। अत्यन्त सरल शैली से सबको समझ में आवे, वैसा यह सत्य है।
(ज्ञान प्रभावना की उत्तम वृत्तिपूर्वक गुरुदेवश्री कहते हैं कि)अभी तो लोगों को ऐसा सत्य मिले, इसके लिये सरल और
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