Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
अनुभवरूप ज्ञानचेतना - बिना कभी धर्म नहीं होता ।
प्रश्न : शुभराग से धर्म नहीं होता तो फिर सब शुभभाव छोड़ देंगे तो ?
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उत्तर : सब राग छोड़ने योग्य है - ऐसी पहले श्रद्धा तो करो । ऐसी श्रद्धा के पश्चात् ही पूजनादि शुभराग भूमिकानुसार होता है परन्तु धर्मी जीव उस राग को ज्ञानचेतना से भिन्न ही जानता है; इसलिए ज्ञानचेतना में से तो सब राग उसने छोड़ ही दिया है। ज्ञानचेतना के साथ राग के एक कण को भी धर्मी जीव मिलाता नहीं है ।
देखो भाई! राग हो, वह अलग बात है परन्तु वह राग, राग में है; ज्ञानचेतना में तो राग नहीं । आत्मा के भूतार्थस्वभाव को अनुभव करनेवाली जो चेतना है, वह चेतना सम्यग्दर्शन-ज्ञान- चारित्ररूप है, वह रागरहित है और उसे ही परमार्थधर्म कहा है, वही मोक्ष का हेतु है। इसके अतिरिक्त जो व्यवहार का शुभराग है और लोग जिसे धर्म मानते हैं, वह कोई परमार्थधर्म नहीं, वह मोक्ष के कारणरूप धर्म नहीं; वह तो स्वर्ग के कारणरूप, अर्थात् संसार के कारणरूप है। उसे ही अज्ञानी परमार्थरूप से अनुभव करता है, परन्तु ज्ञानचेतनारूप परमार्थधर्म को वह नहीं पहचानता ।
मुनिवर तो ऐसी ज्ञानचेतनारूप परमार्थ धर्म के साधक हैं । उसे पहिचाने तो ही मुनि को वास्तव में माना कहा जाये । अज्ञानी, व्रतादि के शुभराग को ही देखता है; इसीलिए मुनि भी वह राग ही करते हैं—ऐसा वह समझता है परन्तु अन्तर में (छिलके से भिन्न चावल की तरह) राग से भिन्न जो शुद्ध ज्ञानचेतना, मुनि को वर्तती
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