Book Title: Samvayang Sutram
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 143
________________ श्रीअभय० वृत्तियुतम् // 123 // सूत्रम् 49 ४९समवायः सप्तसप्तमिकादिः सूत्रम् 50 ५०समवायः सुव्रतार्यादिः ब्रह्मचर्यादिः अष्टचत्वारिंशत्स्थानके किमपि लिख्यते, पट्टण त्ति विविधदेशपण्यान्यागत्य यत्र पतन्ति तत्पत्तनं- नगरविशेषः, पत्तनं रत्नभूमिरित्याहुरेके, धम्मस्स त्ति पञ्चदशतीर्थकरस्य, इहाष्टचत्वारिंशद्रणा गणधराश्चोक्ताः आवश्यकेतु त्रिचत्वारिंशत्पठ्यन्ते तदिदं मतान्तरमिति, सूरमंडले त्ति सूर्यविमानं येषां भागानामेकषष्ट्या योजनं भवति तेषामष्टचत्वारिंशत् त्रयोदशभिस्तैयूंनं योजनमित्यर्थः॥४८॥ सत्त सत्तमियाएणं भिक्खुपडिमाए एगूणपन्नाए राइंदिएहिं छन्नउइभिक्खासएणं अहासुत्तंजाव आराहिया भवइ, देवकुरुउत्तरकुरु एसुणं मणुया एगूणपन्ना राईदिएहि संपत्तजोव्वणा भवंति, तेइंदियाणं उक्कोसेणं एगूणपन्ना राइंदिया ठिई प०॥सूत्रम् 49 // अथैकोनपञ्चाशत्स्थानके लिख्यते, सत्तसत्तमियाणं सप्त सप्तमानि दिनानि यस्यां सा सप्तसप्तमिका- सप्त च सप्तमदिनानि भवन्ति सप्तसुसप्तकेषु अतःसा सप्तदिनसप्तकमयत्वादेकोनपञ्चाशता दिनैर्भवतीति, पडिम त्ति अभिग्रहः छन्नउएणं भिक्खासएणं ति प्रथम दिनसप्तके प्रतिदिनमेकोत्तरया भिक्षावृद्ध्या अष्टाविंशतिर्भिक्षा भवन्ति, एवं च सप्तस्वपि षण्णवतं भिक्षाशतं भवति, अथवा प्रतिसप्तकमेकोत्तरया वृद्ध्या यथोक्तं भिक्षामानं भवति, तथाहि-प्रथमे सप्तके प्रतिदिनमेकैकभिक्षाग्रहणात् सप्त भिक्षा भवन्ति, द्वितीये द्वयोर्द्वयोर्ग्रहणाच्चतुर्दश, एवं सप्तमे सप्तानां ग्रहणादेकोनपञ्चाशदित्येवं सर्वसङ्कलने यथोक्तं मानं भवतीति, अहासुत्तं ति यथासूत्रं- यथागमं सम्यग्न्यायेन स्पृष्टा भवतीति शेषो द्रष्टव्यः, संपत्तजोव्वणा भवंति त्ति न मातापितृपरिपालनामपेक्षन्त इत्यर्थः, ठिइ त्ति आयुष्कम् // 49 // ___ मुणिसुव्वयस्सणं अरहओ पंचासं अज्जियासाहस्सीओ होत्था, अणते णं अरहा पन्नासंधणूई उई उच्चत्तेणं होत्था, पुरिसुत्तमेणं (r) संपन्न० (मु०)। 0 सप्त सप्त दिनानि (मु०)। (c) सर्वमीलने यथोक्तमानं (मु०)। 0 सम्यक् कायेन (मु०)। // 123 //

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