Book Title: Samvayang Sutram
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 280
________________ सूत्रम् 155 संहननादिः श्रीसमवाया श्रीअभय वृत्तियुतम् ||260 // सप्तभिरष्टाभिर्वा न पुनर्नवभिः, एवं शेषाण्यपि, आउगाणि त्ति गतिनामनिधत्तायुरादीनि वाच्यानि यावद्वैमानिका इति, अयं चैकाद्याकर्षनियमो जात्यादिनामकर्मणामायुर्बन्धकाल एव बध्यमानानां न शेषकालमायुर्बन्धपरिसमाप्तेरुत्तरकालमपि बन्धोऽस्त्येव, एषां ध्रुवबन्धिनीनांच ज्ञानावरणादिप्रकृतीनां प्रतिसमयमेव बन्धनिर्वृत्तिर्भवति, एतास्तु परावृत्य बध्यन्त इति // 154 // अनन्तरं जीवानामायुर्बन्धप्रकार उक्तोऽधुना तेषामेव संहननसंस्थानवेदप्रकारानाहँ कइविहेणं भंते! संघयणे पन्नत्ते?, गोयमा! छव्विहे संघयणे पन्नत्ते, तंजहा- वइरोसभनारायसंघयणे रिसभनारायसंघयणे नारायसंघयणे अद्धनारायसंघयणे कीलियासंघयणे छेवट्ठसंघयणे, नेरइयाणं भंते! किंसंघयणी?, गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी णेव अढि णेव छिराणेव ण्हारू जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया अणाएजाअसुभाअमणुण्णा अमणामा अमणाभिरामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति, असुरकुमारा णं भंते! किंसंघयणा पन्नत्ता?, गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी णेवट्ठी णेव छिराणेव पहारू जे पोग्गलाइट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा मणाभिरामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति, एवं जाव थणियकुमाराणं, पुढवीकाइयाणं भंते! किंसंघयणी पन्नता?,गोयमा! छेवट्ठसंघयणी प०, एवं जाव संमुच्छिमपश्चिन्दियतिरिक्खजोणियत्ति, गब्भववंतिया छव्विहसंघयणी, संमुच्छिममणुस्सा छेवट्ठसंघयणी गब्भवक्वंतियमणुस्सा छविहे संघयणे प०, जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरजोइसियवेमाणिया य॥कइविहेणं भंते! संठाणे पन्नत्ते?, गोयमा! छव्विहे संठाणे प०, तं०-समचउरंसे १णिग्गोहपरिमण्डले 2 साइए 3 वामणे 4 खुजे 5 हुंडे 6, णेरइयाणं भंते! किंसंठाणी प०?, गोयमा! हुंडसंठाणी प०, असुरकुमारा किंसंठाणी प०?, गोयमा! समचउरंससंठाणसंठिया प०, एवं जाव थणियकुमारा, पुढवी मसूरसंठाणा प०, आऊ थिबुयसंठाणा 0प्रकारमाह (मु०)। // 260 //

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