Book Title: Samvayang Sutram
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ श्रीसमवाया श्रीअभय० वृत्तियुतम् | // 271 // सूत्रम् 156-159 व्याख्या गणधरः पञ्चमः सुधर्माख्यः सापत्यः शेषा निरपत्याः- अविद्यमानशिष्यसन्ततय इत्यर्थः वोच्छिन्न त्ति सिद्धा इति, तथाहिपरिनिव्वुया गणहरा जीवंते नायए नव जणा उ / इंदभूई सुहम्मे य रायगिहे निव्वुए वीरे // 1 // (आव०नि०६५८) त्ति, अयं च समवसरणनायकः कुलकरवंशोत्पन्नो महापुरुषश्चेति कुलकराणां वरपुरुषाणां च वक्तव्यतामाह-'जंबुद्दीवे' इत्यादि, सुगम नवरं पढमेत्थ विमलवाहण चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे / ततो पसेणईए मरुदेवे चेव नाभी य // 3 // (आव०नि० 155) त्ति तथा चंदजसा चंदकंता सुरूव पडिरूव चक्खुकंता य / सिरिकता मरुदेवी कुलगरपत्तीण नामाइं॥४॥ (आव०नि० 159) ति, तथा नाभी जियसत्तू या जियारी संवरे इय / मेहे धरे पइढे य, महसेणे य खत्तिए // 5 // सुग्गीवे दृढरहे विण्हू वसुपुजे य खत्तिए कयवम्मा सीहसेणे य भाणू विस्ससेणे इअ॥६॥ सूरे सुदंसणे कुंभे सुमित्तविजए समुद्दविजये य / राया य आससेणे सिद्धत्थे च्चिय खत्तिए // 7 // (आव०नि० 387-89) त्ति, तथा मरुदेवि विजयसेणा सिद्धत्था मंगला सुसीमा य पुहई लक्खणा रामा नंदा विण्हू जया सामा॥९॥ सुजसा सुव्वय अइरा, सिरिदेवी पभावती पउमावती य वप्पा सिव वम्मा, तिसला इय जिणमाय // 10 // (आव०नि० 385-86) त्ति तथा सव्वोउगसुभाए छायाए त्ति सर्व कया-सर्वेषु शरदादिषु ऋतुषु सुखदया छायया-प्रभया आतपाभावलक्षणया वा युक्ता इति शेषः॥१७॥ तथा सा हट्ठरोमकूवेहिं ति सा शिबिका यस्यां जिनोऽध्यारूढः हृष्टरोमकूपैः- उद्धृषितरोमभिरित्यर्थः // 18 // तथा चलचवलकुंडलधर त्ति चलाश्च ते चपलकुण्डलधराश्चेति वाक्यम्, तथा स्वच्छन्देन- स्वरुच्या विकुर्वितानि यान्याभरणानि- मुकुटादीनि तानि धारयन्ति ये ते तथा // 19 // असुरेन्द्रादय इति योगः गरुल त्ति गरुडध्वजाः सुपर्णकुमारा इत्यर्थः // 21 // तथा सवे वि एगदूसेण निग्गया जिणवरा चउव्वीसं / न य णाम अण्णलिंगे न य गिहिलिंगे कुलिंगे य // 22 // (आव०नि० 227) त्ति एगदूसेण त्ति एकेन वस्त्रेणेन्द्रसमर्पितेन नोपधिभूतेन युक्ता निष्क्रान्ता इत्यर्थः न चान्यलिङ्गे-स्थविर // 271 //

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