Book Title: Samvayang Sutram
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 254
________________ सनम 142 राशि श्रीसमवायाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् // 234 // प्रज्ञापना अणेगविहा०प० जाव से किं तं अणुत्तरोववाइआ?, अणुत्तरोववाइआपंचविहा पन्नत्ता, तंजहा- विजयवेजयंतजयंतअपराजितसव्वट्ठसिद्धिआ, सेतं अणुत्तरोववाइआ, सेतंपंचिंदियसंसारसमावण्णजीवरासी, दुविहाणेरड्या पन्नत्ता, तंजहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य, एवं दंडओभाणियव्वोजाव वेमाणियत्ति, इमीसेणंरयणप्पभाए पुढवीए केवइयं खेत्तं ओगाहेत्ता केवइया णिरयावासा पण्णत्ता?, गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगंजोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगंजोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसत्तरि जोयणसयसहस्से एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं तीसं णिरयावाससयसहस्सा भवंतीतिमक्खाया, तेणं णिरयावासा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा जाव असुभा णिरया असुभाओ णिरएसुवेयणाओ, एवं सत्तविभाणियव्वाओ जंजासु जुज्जइ-'आसीयं बत्तीसं अट्ठावीसं तहेव वीसंच। अट्ठारस सोलसगं अट्ठत्तरमेव बाहल्लं॥१॥तीसा य पण्णवीसा पन्नरस दसेव सयसहस्साइं। तिण्णेगं पंचूणं पंचेव अणुत्तरा नरगा॥२॥ चउसट्ठी असुराणं चउरासीइंच होइ नागाणं। बावत्तरि सुवन्नाण वाउकुमाराण छण्णउइ // 3 // दीवदिसाउदहीणं विजकुमारिंदथणियमग्गीणं / छण्हंपि जुवलयाणं बावत्तरिमो य सयसहसा / 4 // बत्तीसट्ठावीसा बारस अडचउरो य सयसहस्सा। पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥५॥आणयपाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणचुए तिन्नि। सत्त विमाणसयाइं चउसुवि एएसुकप्पेसु॥६॥एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए। सयमेगंउवरिमए पंचेव अणुत्तरविमाणा // 7 // दोच्चाए णं पुढवीए तच्चाए णं पुढवीए, चउत्थीए पुढवीए पंचमीए पुढवीए छट्ठीए पुढवीए सत्तमीए पुढवीए गाहाहिं भाणियव्वा, सत्तमाए पुढवीए पुच्छा, गोयमा! सत्तमाए पुढवीए अट्ठत्तरजोयणसयसहस्साईबाहल्लाए उवरि अद्धतेवन्नं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता हेट्ठावि अद्धतेवन्नं जोयणसहस्साईवञ्जित्ता मझे तिसुजोयणसहस्सेसु एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अणुत्तरा महइमहालया महानिरया पण्णत्ता, तंजहा- काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पइट्ठाणे नामं पंचमे, ते णं निरया वट्टे // 234

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