Book Title: Sammaisuttam Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Devendra Kumar Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 7
________________ सम्पइसुतं विचारों से सादृश्य प्रकट करती हैं, उनको आ. सिद्धसेन कृत मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । यह उल्लेखनीय है कि जिस युगपद्वाद का प्रतिपादन 'सन्मतिसूत्र' में किया गया है, उसी भाव-साम्य को प्रकट करने वाली भी द्वात्रिंशिकाएँ (1.32, 2. 30, 3. 21-22) हैं। अतएव यह नहीं कहा जा सकता कि सभी द्वात्रिंशिकाएँ प्रामामिल हैं। सिद्धसेन के नाम से रचित अन्य रचनाओं का भी यहाँ परिचय दिया जा रहा है। कुछ समय पूर्व ही मुझे दो रचनाएँ जयपुर में मिली हैं। 'इक्कबीसठाणा' की हस्तलिखित प्रति में सिद्धसेन का नाम है, जैसा कि अन्तिम पध से प्रकट होता है।' दूसरी रचना 'सहस्रनाम' भी हस्तलिखित है, जिसके लेखक का नाम अन्त में सिद्धसेन दिवाकर लिखा हुआ मिलता है। इन दोनों रचनाओं की हस्तलिखित प्रति दि, जैन लूणकरण पाण्ड्या के मन्दिर, जयपुर में विद्यमान है। मैं नहीं समझता कि ये दोनों रचनाएँ एक ही सिद्धसेन की हैं। निश्चयात्मक रूप से इनके सम्बन्ध में कुछ कहने के पूर्व अभी अनुसन्धान करना अवशिष्ट है। इसी प्रकार की अन्य रचनाएँ भी सिद्धसेन के नाम से उपलब्ध होती है जो निश्चित ही अलग-अलग सिद्धसेन नामधारी व्यक्तियों की भिन्न-भिन्न काल की कृतियाँ हैं। ऐसा पता चलता है कि सिद्धसेन नाम के कम-से-कम चार विद्वान् हो चुके हैं। प्रथम सिद्धसेन 'सन्पतिसूत्र' तथा कतिपय द्वात्रिशिकाओं के कर्ता हैं। दूसरे टीकाकार विद्वान् सिद्धसेनगणि हैं जो 'भाष्यानुसारिणी' और 'तत्त्वार्थधिगमसूत्र' टीका के लेखक हैं। तीसरे 'न्यायावतार' के कर्ता सिद्धसेन दिवाकर हैं, जिनका जीवन-काल छठी शती का उत्तरार्द्ध या सातवों शताब्दी है। चौथे साधारण सिद्धसेन हैं, जिन्होंने वि. सं. 1123 में अपभ्रंश भाषा में 'विलासबईकहा' की रचना की थी। ! रचना-काल डॉ, उपाध्येजी ने भलीभाँति पर्यालोचन कर 'सन्मतिसूत्र' के रचयिता आ. सिद्धसेन का समय 505-609 ई. निर्धारित किया है। आचार्य सिद्धसेन के युगपवाद का खण्डन श्वेताम्बर आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण (वि. सं. 562-665) ने विशेषणवत्ती' में और हरिभद्रसूरि (वि. सं. 757-827) ने 'नन्दीवृत्ति' में किया है, जिससे सन्मतिसूत्रकार का समय अधिक-से-अधिक छठी शताब्दी का प्राचीन हो सकता है। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने उनका समय लगभग 575-600 ई. निश्चित किया है। पं. मुख्तारजी के विचार में 'सन्मतिसूत्र' के लेखक सिद्धसेन का समय 1. इय इक्कीसटाणा उद्धरिया सिद्धलेणसूरीहि । चरबीसांजणवसणं असेसमाहारणा भणिया ।। 66 ।। ५. "इति श्रीसिद्धसेनदिघाकरपहायोश्वरविरचितं श्रीसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।' ३. उपाध्ये प. एन. : सिशसेन्ज़ न्यायावतार एण्ट अदर बस, 1971, पृ. 31 + जैन सन्देश. शोधांक 2; 18 दिस, 1958. पृ. 18Page Navigation
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