Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad Author(s): Pritam Singhvi Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth PratishthanPage 20
________________ समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद कहा वह अतीव ताकिक एवं आधारपूर्ण था । वैज्ञानिकता की पृष्ठभूमि में उसने गंभीर चितन व मनन करने के बाद यह उदघोषित किया इस विश्व में अनेकता ही अधिक वास्तविक है । एकांगी दृष्टिकोण से दुराग्रह करना नितांत मूर्खता का काम है । इस विश्व में आत्मा तो अनादि एवं अनंत है।" पाश्चात्य राष्ट्रों मे विज्ञान के प्राबल्य के अहंकार से चलनेवाले गर्विष्ठ विद्वानों को लताडते हुए 'जेम्स काड' नामक एक मनःशास्त्रज्ञने जो कुछ कहा वह आज भी विचारणीय है। उनका अभिमत था- 'आधुनिक विज्ञान अपने वैज्ञानिक साधनों एवं उपकरणों की सहायता से अनुसंधान करके जिस सत्य का प्रतिपादन करता है वह तो केवल तात्कालिक सत्य है, न कि चरम सत्य। वैज्ञानिक लोक में जो कछ भी सत्य निरूपण होता है वह तो सत्य का एकांगी स्वरूप है, न तो पूर्ण-सत्य को वे जानते हैं, न बता भी पाते हैं।' टाल्सटाय ने कहीं कहा है कि जब मैं जवान था तो मैं सोचता था कि कंसिस्टेंट विचारक ही असली विचारक है, जो बिलकुल सुसंगत बात कहता है। एक चीज कहता है तो उसके विरोध में कभी दूसरी बात नहीं कहता । लेकिन अब जब मैं बूढा हो गया हूँ तो मैं जानता हूँ कि जो सुसंगत है, उसने. विचार ही नहीं किया। क्योंकि जिन्दगी सारे कंट्राडिक्सन से भरी है। जो विचार करेगा, उसके विचार में भी कंट्राडिक्शन आ जाएंगे- आ ही जाएंगे। वह ऐसा सत्य नहीं कह सकता, जो एकांगी, पूर्ण और दावेदार हो । उसके प्रत्येक सत्य की घोषणा में भी झिझक होगी। लेकिन झिझक उसके अज्ञान की सूचक बन जाएगी, जबकि झिझक उसके ज्ञान की सूचक है। अज्ञानी जितनी तीव्रता से दावा करता है, उतना ज्ञानी के लिए करना बहुत मुश्किल है। असल में अज्ञान सदा दावा करता है, दावा कर सकता है । क्योंकि समझ इतनी कम है, देखा इतना कम है, जाना इतना कम है , पहचाना इतना कम है, कि उस कम में वह व्यवस्था बना सकता है। लेकिन जिसने सारा जाना है, और जिन्दगी के सब स्वरूप देखे, उसे व्यवस्था बनानी मुश्किल हो जाती है। महावीर के अनेकान्त का यही अर्थ है कि कोई दृष्टि पूरी नहीं है, कोईPage Navigation
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