Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 69
________________ अनेकान्तवाद : समन्वय शान्ति एवं समभाव का सूचक ५३ 1 इसके उपरान्त मनुष्य की जो विशेषता एक दृष्टि से गुणरूप प्रतिभासित होती है वही अन्य दृष्टि से दोषरूप दिखाई देती है । लेकी ने अपने 'हिस्ट्री ओफ युरोपीयन मोरल्स' में इसका एक उदाहरण दिया है कि जो मनुष्य उदार होता है वह खर्चीला दीखता है और जो मनुष्य करकसरपूर्वक खर्च करता है वह कंजूस दीखता है । इसी प्रकार स्त्री का प्रेम संकुचित है क्योंकि वह अनन्य है, उसका मन अन्यत्र नहीं जाता यही उसकी शोभा है। नदी का प्रवाह जहाँ गहरा होता है वहाँ संकरा और जहाँ विस्तृत होता है वहाँ छिछला होता ही है । यही बात स्त्री के प्रेम के विषय में भी समझनी चाहिए। जिस प्रेम के बल अन्तर का प्रत्येक तार हिल उठता है, वह प्रेम एक ही साथ कितने व्यक्तियों में बहाया जा सकता है ? इमरसन ने इसे “ Law of Compensation” -क्षतिपूर्ति का नियम कहा है । इस विषय का उसका जो निबन्ध है वह स्याद्वाद विषयक ही है । उसमें उसने लिखा है कि हमारी शक्ति अपनी निर्बलता से ही उत्पन्न होती है (Our strength grows out of our weakness) प्रत्येक मिठास में खटाई का अंश होता ही है और प्रत्येक बुराई में भलाई का पक्ष भी रहता ही है Every sweet hath its sour; every evil its good. फ्रांसिस टोमसन ने भी कहा है कि माधुर्य में शोक और शोक में माधुर्य समाविष्ट ही है । The sweetness in the sad and the sadness in the sweet. यही समझ हमें बहुत आश्वासन देती है। इतना ही नहीं किन्तु इससे हमें दूसरों में जो दोष दिखाई देते हैं उनमें भी गुणों का दर्शन होने लगता है । ए. जी. गार्डिनर ने अपने एक निबन्ध में किसी एक फ्रेंच लेखक का उद्धरण दिया है । उसमें उसने लिखा है कि जोन और स्मिथ मिलते हैं तब वस्तुत: छः व्यक्तियों का मिलन होता है, वह इस प्रकार है- जोन के अपने मन में जोन का खुद का चित्र, स्मिथ के मन में जोन का चित्र, ईश्वर की दृष्टि में जोन का चित्र (John as john knows himself John as smith

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