Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
View full book text
________________
९६
समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद उतनी ही शीघ्र स्थापित होगी ।
आधुनिक विचारक संत विनोबा भावे अनेकान्त के विषय में लिखते
"अपना सत्य तो सत्य है ही किन्तु दूसरा जो कहता है, वह भी सत्य है। दोनों सत्य मिलकर पूर्ण सत्य होता है । यही महावीर का स्याद्वाद है ।१३ गांधीवादी विचारक काका कालेलकर लिखते हैं
-
"मेरे पास जो 'समन्वय दृष्टि' है यह मैं जैनियों के " अनेकान्तवाद" से सीखा हूँ । अनेकान्तवाद ने मुझे बौद्धिक अहिंसा सिखाई, इसके लिए मैं जैन दर्शन का ऋणी हूँ ।"१४
अब अन्त में वाचस्पति गैरोला के विचार देखें ।
वे लिखते हैं
-
"प्रत्येक निष्पक्ष विचारक को लगेगा कि स्याद्वाद ने दर्शन के क्षेत्र में विजय प्राप्तकर अब वैज्ञानिक जगत् में विजय पाने के लिए सापेक्षवाद के रूप में जन्म लिया है । ११५
"स्याद्वाद का जितना संबंध आध्यात्म से है, उतना ही भौतिक वस्तु से भी ॥ १६
“जैनों का अनेकान्तवाद कुछ ऐसा गढा हुआ सिद्धान्त नहीं है, जिसमें जैन दर्शन की वैयक्तिक दृष्टि का आभास मिलता हो । वह तो लोकदृष्टि से जितना उपयोगी है विचार की दृष्टि से भी उतना ही उपयोगी है ।" १७
पूर्व और पाश्चात्य दर्शनों में स्याद्वाद का मूल्य अपूर्व है । स्याद्वाद सुख, शान्ति और सामंजस्य का प्रतीक है। विचार के क्षत्र में अनेकान्त, वाणी के क्षेत्र में स्याद्वाद और आचरण के क्षेत्र में अहिंसा ये सब भिन्न-भिन्न दृष्टियों से लेकर एक रूप ही है । जो दोष नित्यवाद में है, वे समस्त दोष अनित्यवाद में उसी प्रकार से हैं अर्थ-क्रिया न नित्यवाद में बनती है, न अनित्यवाद में । अतः दोनों वाद परस्पर विध्वंसक है । इसी कारण स्याद्वाद का स्थान सर्वश्रेष्ठ है । हिंसा, अहिंसा, सत्य, असत्य आदि का निर्णय इसके द्वारा सरलता से किया
1