Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद
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कर रहे हैं और सहअस्तित्व का मार्ग ढूँढते जा रहे हैं ।
ऐसे समय में अनेकान्त की आवश्यकता सर्वोपरि है । विश्व में विश्व शान्ति कायम रखना है तो अनेकान्त से ही यह रह सकती है ।
इसी प्रकार समाज में और हमारे देश में भी अनेकान्त की विचार धारा एवं अनेकान्तिक दृष्टिकोण की अधिक आवश्यकता है । समाज में और हमारे देश में विभिन्न धर्म, विभिन्न जाति, विभिन्न भाषा के लोग रहते हैं । यदि उन विभिन्नताओं में एकता का सूत्र न रहे तो समाज में और देश में शान्ति कायम रहना कठिनतम हो जाता है । यह एकता का सूत्र कायम रखना अनेकान्त दृष्टि से ही हो सकता है । विभिन्नता में एकता रखना अनेकान्त का ही कार्य है । इस एकता के बल पर ही देश विकसित होता है ।
भारत में आज तक पारस्परिक संघर्ष हुए हैं, उनमें धार्मिकता की अंधश्रद्धा अधिक प्रेरक रही है। यदि इस क्षेत्र में भी अनेकांत की भावना आ जाय तो भविष्य में कभी भी इस प्रकार के संघर्ष होने की नौबत न आ सके। अनेकान्त केवल दार्शनिक चिन्तन एवं कथन की प्रणाली ही नहीं है, अपितु प्रतिदिन जीवन व्यवहार में भी हम अनेकान्त का प्रायोगिक रूप देख सकते हैं । अनेकान्त वाद स्वस्थ चिन्तन की प्रक्रिया के साथ-साथ स्वस्थ आचार की भी प्राथमिक भूमिका है ।
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जैन दर्शन की विश्व को बडी भारी देन अहिंसावाद है, जो कि वास्तव में दार्शनिक भित्ति पर स्थापित अनेकान्तवाद का ही नैतिक शास्त्र की दृष्टि से अनुवाद का जा सकता है। धार्मिक दृष्टि से यदि अहिंसावाद को ही सर्व प्रथम स्थान देना आवश्यक हो तो हम अनेकान्तवाद को ही उसका दार्शनिक दृष्टि से अनुवाद कह सकते हैं ।
विचारों की संकीर्णता या असहिष्णुता ईर्ष्या-द्वेष की जननी है । इस असहिष्णुता को हम किसी अंधकार से कम नहीं समझते। आज जो विश्व में अशांति है, उसका मुख्य कारण यही विचारों की संकीर्णता है । इस संकीर्णता को अनेकान्तवाद मिटाता है ।
समन्वय का दृष्टिकोण आज जगत् के व्यवहार में अनिवार्य बन गया