Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

Previous | Next

Page 109
________________ अनेकान्तवाद का आधुनिक दार्शनिकों पर प्रभाव अनेक विकल्पात्मक कथन हैं। हेगेल महोदय का एक कथन और देखिए - "प्रत्येक वस्तु भाव और अभाव का मेल है। इसके अस्तित्व का अर्थ ही यह एकसाथ है और "नहीं" है । भाव में ही अभाव विद्यमान है ।"५ यह भावाभावात्मक वस्तु को मानना स्पष्ट अनेकान्त के सदृश है । अनेकान्तवाद अस्तित्व, नास्तित्व आदि उभय धर्मों का समन्वित रूप है । स्पष्ट ही अनेकान्त के समान कथन यहाँ है। अब हम प्रसिद्ध चिन्तक श्री कबीर का उद्धरण लें - "साकार ब्रह्म मेरी मां है, और निराकार ब्रह्म मेरे पिता । मैं किसे छोडूं, किसे स्वीकार करूँ ? तराजू के दोनों पलडे बराबर भारी हैं ।"६ यहां एक ही ब्रहम में अवच्छेदक भेद से साकारत्व और निराकारत्व, पितृत्व एवं मातृत्व दो विशुद्ध धर्मों को माना गया है । यह स्पष्ट ही अनेकान्त __ अब हम आध्यात्मिक जगत के वर्तमान महान चिन्तक श्री रामकृष्ण परमहंस के कार्य पर दृष्टि डालते हैं। उनके विचारों पर अनेकान्त का काफी प्रभाव परिलक्षित होता है । डो. हृदयनारायण मिश्र लिखते हैं - "परम सत्ता संबंधी अपने विचारों के लिए रामकृष्ण शंकर के अद्वैत और रामानुज के विशिष्टाद्वैत दोनों से प्रभावित जान पड़ते हैं।" "वास्तव में रामकृष्ण ने इन दोनों विचारधाराओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न किया ।" . ऊपर बतलाया गया है कि रामानुज के सिद्धान्त पर अनेकान्त का स्पष्ट प्रभाव है। श्री रामकृष्ण ने शंकर के साथ रामानुज के विशिष्टाद्वैत को भी अंगीकार किया है । यह दो विभिन्न मतों का समावेश एवं समन्वय बिना अनेकान्त के प्रभाव के नहीं हो सकता । पश्चिम के सुप्रसिद्ध चिन्तक श्री रोमां रोलां ने श्री रामकृष्ण के शब्दों को उदधृत किया है - "मेरी देवी मां निरपेक्ष से भिन्न नहीं है । वह एक ही समय में एक

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124