Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad Author(s): Pritam Singhvi Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth PratishthanPage 61
________________ अनेकान्तवाद : समन्वय शान्ति एवं समभाव का सूचक होती है, इसलिए पुद्गली है। . शरीर आत्मा को पौद्गलिक सुख-दुःख की अनुभूति का साधन बनाता है , इसलिए वह उससे अभिन्न है। आत्मा चेतन है, काय अचेतन है। वह पुनर्भवी है, काय एकभवी है । इसलिए ये दोनों भिन्न हैं । स्थूल शरीर की अपेक्षा वह रूपी है और अपने स्वरूप की अपेक्षा वह अरूपी है । शरीर आत्मा से क्वचित् अपृथक भी है, इस दृष्टि से जीवित शरीर चेतन है । वह पृथक् भी है इस दृष्टि से अचेतन, मृत शरीर अचेतन ही होता है। ___यह पृथ्वी स्यात् है, स्यात् नहीं है और स्यात् अवक्तव्य है । वस्तु स्वदृष्टि से है, पर-दृष्टि से नहीं है, इसलिए वह सत्-असत् उभय रूप है । एक काल में एक धर्म की अपेक्षा वस्तु वक्तव्य है और एक काल में अनेक धर्मों की अपेक्षा वस्तु अवक्तव्य है। इसलिए वह उभय रूप है । जिस रूपमें सत् है, उस रूप में सत् ही है और जिस रूप में असत् हैं उस रूप में असत् ही है। वक्तव्य-अवक्तव्य का यही रूप बनता है। उपनिषद में एक शिष्य ने गुरु से पूछा - " हे भगवन् ! ऐसी कौनसी वस्तु है जिसके ज्ञान से वस्तुमात्र का ज्ञान हो जाय ?" (मुण्डक १-१३) ऐसा ही एक प्रश्न पूछनेवाले दूसरे विद्यार्थी श्वेतकेतु को उसके पिता आरुणि ने कहाः मिट्टी के एक लोंदे को जान लेने से मिट्टी से बनी हुई सभी वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है-एकेन मृत्पिण्डेन विज्ञातेन मृण्मयं विज्ञातं स्यात् । (छांदोग्य६-१-४) जैन धर्म ने वह बात तो बताई सो बताई किन्तु साथ ही में उससे फलित होनेवाले एक उपसिद्धान्त का भी निर्माण किया और स्याद्वाद का स्वरूप-वर्णन करते हुए कहा कि जो एक पदार्थ को सर्वथा जानता है वह सभी पदार्थों को सर्वथा जानता है । जो सर्व पदार्थों को सर्वथा जानता है वह एक पदार्थ को भी सर्वथा जानता है। "एको भावः सर्वथा येन दृष्टः सर्वेभावाः सर्वथा तेन दृष्टाः । सर्वेभावाः सर्वथा येन दृष्टाः एको भावः सर्वथा तेन दृष्टः ॥ अर्थात् सभी पदार्थों को उनके सभी स्थानान्तरों सहित जानने वालाPage Navigation
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