Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

Previous | Next

Page 39
________________ २३ स्याद्वाद, सप्त-भंगी, नयवाद, प्रमाण . स्याद्वाद के भंगों की विशेषता ऋग्वेद से भ० बुद्ध पर्यन्त जो विचारधारा प्रवाहित हुई है उसका विश्लेषण किया जाय तो प्रतीत होता है कि प्रथम एक पक्ष उपस्थित हुआ जैसे सत् या असत् का । उसके विरोधमें विपक्ष उत्थित हुआ असत् या सत्का । तब किसीने इन दो विरोधी भावनाओंको समन्वित करने की दृष्टिसे कह दिया कि तत्त्व न सत् कहा जा सकता है और न असत् वह तो अवक्तव्य है। और किसी दूसरेने दो विरोधी पक्षोंको मिलाकर कह दिया कि वह सदसत् है । वस्तुतः विचारधाराके उपर्युक्त पक्ष, विपक्ष और समन्वय ये तीन क्रमिक सोपान हैं। किन्तु समन्वयपर्यन्त आजानेके बाद फिरसे समन्वयको ही एक पक्ष बनाकर विचारधारा आगे चलती है, जिससे समन्वयका भी एक विपक्ष उपस्थित होता है। और फिर नये पक्ष और विपक्षके समन्वय की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि जब वस्तुकी अवक्तव्यतामें सद् और असत्का समन्वय हुआ तब वह भी एक एकान्त पक्ष बन गया । संसारकी गतिविधि ही कुछ ऐसी है, मनुष्यका मन ही कुछ ऐसा है कि उसे एकान्त सह्य नहीं । अतएव वस्तुकी एकान्तिक अवक्तव्यताके विरुद्ध भी एक विपक्ष उत्थित हुआ कि वस्तु एकान्तिक अवक्तव्य. नहीं उसका वर्णन भी शक्य है । इसी प्रकार समन्वयवादीने जब वस्तुको सदसत् कहा तब उसका वह समन्वय भी एक पक्ष बन गया और स्वभावतः उसके विरोधमें विपक्षका उत्थान हुआ । अतएव किसीने कहा एक ही वस्तु सदसत् कैसे हो सकती है, उसमें विरोध है । जहाँ विरोध होता है वहाँ संशय उपस्थित होता है । जिस विषयमें संशय हो वहाँ उसका ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं हो सकता । अतएव मानना यह चाहिए कि वस्तुका सम्यग्ज्ञान नहीं । हम उसे ऐसा नहीं कह सकते, वैसा भी नहीं कह सकते । इस संशय या अज्ञानवादका तात्पर्य वस्तुकी अज्ञेयता, अनिर्णेयता, अवाच्यतामें जान पडता है। यदि विरोधी मतोंका समन्वय एकान्त दृष्टिसे किया जाय तब तो फिर पक्षविपक्ष-समन्वयका चक्र अनिवार्य है । इसी चक्रको भेदनेका मार्ग भगवान् महावीरने बताया है। उनके सामने पक्ष-विपक्ष -समन्वय और समन्वयका भी विवक्ष उपस्थित था । यदि वे ऐसा समन्वय करते जो फिर एक पक्षका रूप ले तब तो पक्ष-विपक्ष-समन्वयके चक्रकी गति नहीं रुकती । इसीसे उन्होंने

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124