Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad Author(s): Pritam Singhvi Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth PratishthanPage 45
________________ तृतीय प्रकरण चार आधार, पाँच कारण चार आधार किसी भी वस्तु के बारे में निर्णय करने के लिये अत्यन्त आवश्यक ऐसे आधार स्तम्भ समान चार शब्दों को और उसकी उपयोगिता को बराबर समझ लेना चाहिये । इस में प्रथम आधार है 'द्रव्य' । . प्रथम आधार-'द्रव्य' । द्रव्य अर्थात् पयार्य । अंग्रेजी में इसकों Substance अथवा Matter कहते हैं। यहां पर उसका अर्थ मूल द्रव्य से है। मूल से अर्थ है कि अवस्थाओं में परिवर्तन होने पर भी जिनका मूल द्रव्य कायम रहता है वह द्रव्य । उदाहरण के तौर पर जेवर में सोना, फर्नीचर में लकडा तथा घडे में मिट्टी । जैन धर्म में जो छ: द्रव्य बताए गये हैं उनमें काल द्रव्य का इसमें समावेश नही होता क्योंकि, काल एक विशिष्ट एवं अविभाज्य वस्तु है । इसके विभाग नहीं हो सकते । दिन-रात, घंटे मिनिट सैकंड इत्यादि जो विभाग हमने काल के किये हैं वे सभी काल के विभाग नहीं है । व्यवहार चलाने के लिए हमने कल्पना और बुद्धि का आश्रय लेकर ऐसे विभाग किये हैं । प्रातःकाल, सन्ध्याकाल, रात्रि आदि जो भी काल है वह वास्तव में काल नही होकर प्रकाश आदि पदार्थों का परिभ्रमण मात्र है। काल एक नियामक द्रव्य हैं । पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, शब्द ये सभी द्रव्य है। ये सभी पदार्थ 'पुद्गल' द्रव्य में आजाते हैं। द्रव्य का अर्थ हमेशा आधारभूत द्रव्य के रूप में किया गया है। उदाहरण के तौर पर तलवार का मूल द्रव्य लोहा, टेबल का मूल द्रव्य लकडी, वीटी का मूल द्रव्य सोना, रोटी का मूल द्रव्य गेंऊ, चप्पल का मूल द्रव्य - चमडा 'इत्यादि दूसरा आधार - 'क्षेत्र'। क्षेत्र शब्द का अर्थ उपरोक्त द्रव्यों के रहने का स्थान होता है । अंग्रेजी में इसे place अथवा space कहते हैं । क्षेत्र सम्बन्धी उपरोक्त अर्थ और उसकेPage Navigation
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