Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद
(२) स्वभाव स्वभाव यहाँ उसके भाव अथवा गुणधर्म के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। स्वभाववादी जगत का कारण स्वभाव को ही मानते हैं । उनका कहना है कि बन्ध्या स्त्री के कभी बालक नहीं होता, हाथ की हथेली में अथवा पाँव के तलीयें में कभी बाल पैदा नहीं होते, नीम के पेड पर कभी आम नहीं लगते,
आम की गुटली के अन्दर से कभी नारियल या केला नहीं निकलता, मोर के पंख मोर के शरीर पर ही पैदा होते है, पर्वत की स्थिरता, वायु की अस्थिरता, . इत्यादि स्वभाव का ही परिणाम है, काल का नहीं.
मछली और तुम्बा पानी पर तैरता है। कंकर और पत्थर पानी में डूब जाते हैं । उष्णता का स्वभाव वाला सूर्य, शीतलता का स्वभाव वाला चन्द्रमा, गन्ने की मिठास इत्यादि सभी अपने स्वगुणों के हिसाब से चलते हैं। इसलिये कार्य का कारण काल नहीं होकर स्वभाव है।
(३) भवितव्यता जो लोग भवितव्यता को पानते हैं उनके अनुसार जो कार्य नहीं होने का होता है वह नहीं होता है तथा जो होना होता है वह होता ही है। व्यक्ति को नियति जिस ओर ले जाती है उस ओर नही चाहने पर भी उसे जाना पड़ता है । नियति में हो तो बिना किसी कोशिष के वस्तु मिल जाती है।
गर्भ से पैदा होने वाले सभी बालक जीवित नहीं रहते । आम के पेड़ पर लगने वाले सभी फूल आम में परिवर्तित नहीं होते । घने जंगल में से और युद्धभूमि से व्यक्ति जीवित लौटकर आजाता है और घर में आकर बिस्तर पर मृत्यु को प्राप्त करता है। इसलिये इन सभी घटनाओं के लिये भवितव्यतावादिओं के अनुसार नियति जिम्मेदार है । नियति ही इन सब कार्यों का कारण है।
यहाँ हमें भवितव्यता का अर्थ स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिये । साधारणतया इस शब्द का दो अर्थों में प्रयोग किया जाता है।
(१) कर्म के अनुसार व्यक्ति का भाग्य होता है। (२) ईश्वर की कृपा अथवा इच्छा । 'मैंने यह कार्य किया है' ऐसा