Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 27
________________ अनेकान्त का अर्थ, उसका उद्भव तथा मर्यादा I 1 अनेकान्त केवल ज्ञानजन्य अनुभूति है । उसी अनुभूति का वचन द्वारा प्रकाशन स्याद्वाद है। यही कारण है कि भगवद्वाणी स्याद्वादमयी होती है ।१४ अतः स्याद्वाद का जन्म भगवान अर्हन्त देव की दिव्य भाषा के साथ है । इस युग के आदि तीर्थंकर ऋषभ देव हैं । इसलिए उनको ही स्याद्वाद का आदि प्रवर्तक कहा जा सकता है । भगवान् ऋषभ के अनन्तर बाईस तीर्थंकर उसी प्रकार का उपदेश अपनी स्याद्वादमयी वाणी द्वारा करते रहे हैं । १५ वर्तमान समय के तीर्थंकर भगवान् महावीर हैं। भगवान महावीर की प्रतिष्ठा और सिद्धान्त बौद्ध त्रिपिटकादि ग्रंथों द्वारा सिद्ध है । इस समय वे ही स्याद्वाद - सिद्धान्त के पुरस्कर्ता कहे जाते हैं । कहा जाता है कि उनके ही समकालीन संजय वेलत्थपुत्त ने इस सिद्धान्त का अज्ञानवाद के रूप में प्रतिपादन किया था । उसीको भगवान महावीर ने परिवर्धित और परिष्कृत किया, अथवा उत्तर काल में जिस वस्तु को माध्यमिकों ने चतुष्कोटि विनिर्मुक्त कहा" उसीको भगवान महावीर ने विधि रूप देकर परिपुष्ट किया । ऐतिहासिक पंडितों की ये परिकल्पनाएं इसलिये निराधार हैं कि जैन तीर्थंकरों ने अनेकान्त तत्त्व का साक्षात्कार किया और श्रुत- केवलियों ने उनके अर्थ को अनुश्रुत करके स्याद्वाद का श्रुत के रूप में वर्णन किया। इसके अतिरिक्त निषेध सदा विधिपूर्वक" होता है, अत: उनके प्रतिष्ठापक अर्हन्त - केवली, श्रुत-केवली आदि ही हैं, साधारण व्यक्ति नहीं । अन्य आरांतिआदिकों ने उन्हीं का अनुसरण किया है । स्याद्वाद का स्पष्ट उल्लेख समन्तभद्र, सिद्धसेन, अकलंक आदि के ग्रंथों में हैं । स्यादवाद की मुख्य प्रतिष्ठा का श्रेय समन्तभद्र को है । सिद्धसेन ने भी इसकी परिपुष्टि में अच्छा भाग लिया है । अकलंक, हरिभद्र, विद्यानन्द, हेमचन्द्र, आदि ने इसके विकास में चार चाँद लगा दिये हैं। आचार्य कुन्दकुन्द ने सप्तभंगी का उल्लेख किया है, स्याद्वाद का नहीं । जो कुछ भी हो, स्याद्वाद जैन दर्शन के तत्त्वों का वर्णन करने में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुआ है । I ११ अनेकान्त के उद्भव कर्ताओं ने यह अच्छी तरह अनुभव किया था कि जीवन-तत्त्व अपने में पूर्ण होते हुए भी वह कई अंशों की अखण्ड समष्टि है। यही स्थिति प्रत्येक वस्तु तत्त्व की भी है । अतः वस्तु को समझने के लिए अंश का समझना भी आवश्यक है। किसी मशीन को पूर्ण रूप से समझने के लिये उसके पुर्जों का समझना भी जरूरी है । यदि हम अंश को समझने

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