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परोक्षणों के द्वारा झवेर चन्द को मनोवृति, वैराग्य-भावना की परीक्षा, संयम ग्रहण करने का दायित्व समझाकर कुटम्बियों को सम्मति प्राप्त करने के प्रयत्न करने की बात जताई।
प्रारम्भ में मोह के उत्साह-उमंग से लिपटे विवेकी तथा बुद्धिशाली कुटम्बियों के “ यम को दिया जाय पर यति को न दें।" उसी प्रकार " अभी तो तेरी कच्ची उम्र है न” “संसार के भोगों को समझे बिना अनुभव किये बिना क्यों उतावला होता आदि शब्दजाल को भूल भुलेया युक्त जंजाल में झवेरचंद जी के मन को इधर-उधर करने का प्रयास किया । संवेग रंग वाले झवेरचंद ने शरीर की असारता तथा जीवन की क्षण भंगुरता समझने के साथ धर्म आराधना में तनिक भी प्रमाद न करने की प्रकट की, उसी प्रकार अपने रहन-सहन कथनी में सादगी, विगाहयों का त्याग, आंबिल को तपस्या आदि से चालू जोवन व्यवहार में त्याग-बैराग्य का प्रतिबिंब उत्पन्न कर कुटम्बो जनों को अन्ततः सहमत किया । माता जी का मोह किसी भी प्रकार शिथिल नहीं हुआ जिससे जवरचन्द भाई ने पू. श्री गौतम सागर जी म. को सम्पूर्ण बातें कही ।
पू. श्री गौतम सागर जी म. श्री ने “सॉपमरे नहीं", पत्थर के नीचे अँगुली हो तो बल नहीं, कल का काम " कल के स्थान बल प्रयोग से बात टूटे-बिगड़ जाय" आदि सुभा