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उत्तम हो।" यह सब तय करके पूज्य श्री के पास मुहूर्त दिखलाया। का. वि. 5 का मुहूर्त माया । उस दिन से चौगान के देहरासर से चैत्य परिपाटी का मंगल प्रारम्भ हुआ।
अलग-अलग मुहल्लों के श्रावकों के प्राग्रह से व्याख्यान मंडप, सार्मिक भक्ति, प्रभावना आदि की व्यवस्था होने लगी । सम्पूर्ण उदयपुर में जैन शासन का भव्य जय जयकार बर्ताने लगा । इस चैत्य परिपाटी के लगभग एक माह में पूरी हो जाने के बाद एक सप्ताह आस-पास के प्राचीन जिनालयों की चैत्य-परिपाटी करने के लिये पूज्य श्री का विचार था। परन्तु श्री संघ का उत्साह बहुत अधिक था जिससे मुहल्लावार प्रत्येक श्रावक खूब प्राग्रह से एक दिन व्याख्यान की योजना बनाई जिससे पूज्य श्री की वाणी का लाभ लेने की होड़ा होड़ी होने से माघ वि. 10 तक भी उदयपुर स्थानिक जिनालयों की चैत्य परिपाटी पूरी नहीं हो सकी।
इस बीच में भीलवाड़ा के किशन जी सेठ के उपरा उपरी विनती पत्र आने पर पूज्य श्री ने चत्य परिपाटी काम पूरा होने पर आने का विचार है ऐसा (माधम) स्वलप उत्तर देते अन्ततः माघ वि. 10 के दिन सवीना खेड़ा तीर्थ सकल श्री संघ के साथ पूज्य श्री पोष-इसमी पर्व की आराधना निमित पधारे । तब वहां भीलवाड़ा श्री संघ आया। पूज्य श्री ने पोष विद अाठम के पूर्व चैत्य परिपाटी पूरी हो नहीं
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