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चर्या के प्रतीक रूप प्रत्येक उपधान वालों ने बड़ भाग में अपनी उपधि खुद ने उठाई सिसारमा गांव में पूज्य श्री के साथ विहार का रसास्वादन लिया । सिसारमा गांव जाकर श्री सिद्धगिरी के पट की यात्रा की। श्री सिद्धाचल महातीर्थ की आराधनार्थ चैत्य वंदन का उस्सग इत्यादि करके ठेठ दो बजे मंद शक्ति वालों ने नीवि की । शेष अनेकों ने पूज्य श्री की देशना से भावित होकर छट्ठ की तपस्या की ।
दूसरे दिन साधु की तरह अपनी उपधि उठाकर वापिस चौगान के देहरे आकर सम्पूर्ण विधि की । पूज्य श्री ने साठ पोरसी को पच्चव पालने की छूट दी फिर भी छट्ठ के सब तपस्वियों ने पुनिमढ़ नीवी उमंग युक्त की । ऐसी उपधान के आराधकों की विशिष्ट आराधना की जागृति पूज्य श्री के व्याख्यान के बल पर संयोजित हुई ।
उस प्रसंग में सकल श्री संघ ने उदार मन से लाभ लेने के लिए उमंग पूर्वक तैयारी करनी प्रारम्भ की। पूज्य श्री ने उपधान वालों को समझाया कि - " अब विरति - जीवन के दिन थोड़े गिनती के हैं, दुनिया की दृष्टि से तुम अब मुक्त होने को हो । परन्तु वास्तव में मोहमाया के बंधन से अभी छूटे हो, पर वापिस बंधन में आने को हो । यदि शक्य हो तो देश विरति में से सर्व-विरति के उच्च वर्ग में नाम लिखवाना । प्रसरी रहे तो- “ भागता भूत की चोटली
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