Book Title: Sagar Ke Javaharat
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh

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Page 250
________________ साधु समुदाय के साथ धूमधाम से सामैया के साथ पोल में पधरावणी की। ठेठ स्वामी नारायण मंदिर के सामने से कोकाभट्ट की पोल तक राजमार्ग को भव्य रूप से सजाया अपनी (कीका भाई) पोल के उपाश्रय में व्याख्यान रखा । पोल के देहरासर में दर्शन करके उपाश्रय में आकर गच्छाधिपति ने मंगलाचरण किया। तीर्थ यात्रा तथा छ"री पालन करते संघ के विषय में पूज्य श्री को व्याख्यान के लिये आज्ञा की। पूज्य श्री ने भी शास्त्रीय शैली से तीर्थो तथा उनकी यात्रा की महत्ता छ"री पालन युक्त संघ यात्रा का महत्व तथा उस सम्बन्ध में उचित कर्तव्यों पर सवा घंटे प्रकाश बिछाया । अन्त में गच्छाधिपति ने भी दो शब्द कह कर संघवी के भाव को परिपुष्ट किया। पोल के संघवी तरफ से दीपचंद सेठ ने संघ के प्रमुख व्यक्यिों सेठ ने पहरामणी करके संघपति का तिलक किया । पू. गच्छाधिपति ने भी संघ यात्रा तथा संघपति शब्द के रहस्य बताते हुए फरमाया कि "संघ की अपने प्रभु की आज्ञा को शिरोधार्य करके बकलसाभ करने की जवाबदारी समझे तथा संघ में आनेवाले सभी प्रभुशासन के मार्मिकभावों को ध्यान में रखकर सहनशीलता, समता, सतोष आदि गुणों को संयोग आदि धार्मिक उपदेश देकर सबको कर्तव्यनिष्ठ बनने हेतु जागृत किया । २२६

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