________________
पहा मादि तीर्थों में विचरण करके छ: गांवों की प्रदक्षिणा करके फा. सु. 13 को गिरिराज श्री सिद्धाचल महातीर्थ को भेंट करने पधारे। - सेठ श्री नरसी माथानी की धर्मशाला में मुकाम था। वहां लीम्बड़ी, बोटाद, बढ़वाण आदि गांवों के संघों के प्रमुख व्यक्ति चातुर्मास के लिये विनती करने आये । योग्य लाभालाभ का विचार करके पूज्य श्री ने पू. श्री वृद्धिचंद जी म. की सम्मति लेकर चौमासा का निर्णय किया तथा चैत्र विद 3 के रोज बोटाद की तरफ विहार किया । चैत्र विद 13 के मंगल दिन बोटाद में प्रवेश किया।
अक्षय तृतीया के मंगल दिन वर्षीतप के महत्व तथा दानधर्म के श्रेयस्कारिता, जिसमें रखने आवश्यक पात्रापात्र विचार कर पूज्य श्री ने उत्तम प्रकाश डाला। सौराष्ट्र में स्थान स्थान पर बढ़ रहे ढढुक पंथियों के परिचय को नाथ ने (वश में करने) के लिये पूज्य श्री ने जिन शासन की आज्ञा-मर्यादानुसार संयम तथा पंच महाव्रतों का पालन करनेवाले संयमो मुनिवरों को दिया जानेवाला "प्रासुक-ऐषजीय" दान को सर्वोच्च बताकर गृहस्थ के अ-भंगद्धार रूप मैं चाहे जिस आँगन से वापिस नहीं लाये इस नीति से भले ही अन्य संप्रदाय वाला ले जाय, परन्तु अन्तर के भावोल्लास तथा प्रबल गुणानुराग पूर्वक दिये गये सुपात्र-दान की २३८