Book Title: Sagar Ke Javaharat
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh

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Page 262
________________ मास में पूजणी, झीनी सावरणी आदि के उपभाग की बात त्यंग्य शैली में प्रारंभ की परिणामस्वरुप संघ में उत्तम जागृति पाई। आषाढ़ सुद मे 5-6 तथा 8 तीन दिन नीवी प्राबिल, उपवास से "णमो जिणार्ण जिअभयाणं" को प्रतिदिन 41. 42-42 माला गिनवाकर तीन दिन में 12500/ जाप कराये जिसके परिणामस्वरुप पूण्यात्मा संसारिक उपाधि के त्रास को भूल जाय तथा परमात्मा को शरणगति प्राप्त कर सके । पूज्य श्री के साथ इस समय तीन ठाणा थे । उनमें से पूज्यश्री जीतविजय म. ने प्राषाढ़ सु.7 से चातुर्मासी अठ्ठाई की तपस्या स्वीकार की । बोटाद में पूज्य श्री के साथ तीन ठाणां होने के सम्बन्ध में प्राचीन पत्र संग्रह में से पुराना एक पत्र निम्नानुसार मिल पाया है :- "पत्र नं. 48" स्थान श्री बोटाद-तत्र विराजमान महाराज श्री झवेर सांगर जी योग्यमुकाम बढवाण केम्प से लि. मूनि लब्धि विजयजी तथा कमल विजय जी आदि की वंदना अवधारियेगा जी। यहां देवगुरु अनुकम्पा से सुख-शाता है। यहां अन्य भावसार रवजी को दीक्षा आषाढ़ सुद 6 वार गरूवार के दिन ग्यारह बजे प्रारभ करके तथा सवा बारह बजे दीक्षा दी है जो सहज आपको जानकारी के लिये लिखा है। यह आराधना चौविहार उपवास से कराई । ऐसी सुन्दर पाराधना पहलीबार देखने में आयी जिससे लोगों में खूब भावोल्लास हुअा। श्रा. वि. चौथ को पन्द्रह के घर के दिन सबकी विषय-काषाय की वासनात्रों की विषमता समझ कर पर्वाधिराज के स्वागत-सन्मान के लिये अंतर-शुद्धि २४१

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