Book Title: Sagar Ke Javaharat
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh

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Page 264
________________ श्रष्टा हिनिका महोत्सव का कार्यक्रम जाहिर किया । भा. सु 6 दोपहर एक बजे भव्य रथ यात्रा निकली जिसमें चांदी के तीन रथ, दो गजराज, विविध वाद्य यंत्र तथा श्रृंगारित 30/40 तपस्वियों की गाड़ियां थी । सम्पूर्ण बोटाद शहर में जैन शासन के त्याग धर्म की प्रपूर्व बोलबाला हो रही थी । भा. सु. 8 के व्याख्यान के पश्चात श्री संघ की तरफ से साध्वीजी तथा श्राविकाओंों के वर्ग ने सामूहिक खामणा किया । पूज्य श्री ने दुबली अष्टमी के रूप में गिने जाने वाले आज के दिन को काषायों तथा वासनाओं कितनी हलकी पड़ी ? इस सम्बन्ध में जांच पड़ताल करने पर भार डालकर प्रदर्श क्षमापना का महत्व समझाया । . भा. सु. 10 को भव्य महोत्सव प्रारम्भ हुआ । बड़नगर (गुजरात) से धर्मं प्रेमी भोजकों को बुलाकर प्रभुभक्ति में जमे तथा अपूर्व भावोल्लास हो ऐसी व्यवस्था पूज्य श्री की प्रेरणा से हुई थी । ऐसे परम शासन प्रभावक पू. श्री झवेर सागर जी महाराज की विशिष्ट प्राराधना हुई जिसकी अनुमोदना के निमित्त भा सु. 10 से भा. व. 4 को भव्य अष्टान्हिका महोत्सव भावोल्लास पूर्वक किया । बाद में भाद्र वि में विद 13-14 श्री शत्रु जय गिरी प्राराधना के ठुम ठाठ से कराये । सेठ गोपाल जी जेसिंह जी भाई ने पारणा का लाभ लेकर श्री फल रुपया से तपस्वियों का बहुत मान किया | 1 पश्चात् पूज्य श्री की प्रेरणा से शाश्वती श्री नवपद जी की लो आराधना 200 प्राराधकों ने की । उसके पारणा चिमन लाल छोटालाल शाह की तरफ से ठाठ से हुए । बाद २४३

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