Book Title: Sagar Ke Javaharat
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh

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Page 260
________________ विशिष्टता का ध्यान रखने पर खूब रसयुक्त, व्यवस्थित, तर्कबद्ध रीति से विचार प्रकट किये । 1 परिणामस्वरुप बाह्रय श्राचार तथा तामटप्पा वाले अल्प तोता रटंत ज्ञान के आधार पर मुग्ध जनता के हृदय मे आदर पात्र बन रहे दुकपंथियों को भक्तिपूर्वक सामने अशास्त्रीय पद्धति पांव बुलाकर आदरपूर्वक वोहरावने की को हटाने के सम्बन्ध में पूज्य श्री ने बेधड़क प्रकाश प्रसारित किया । वै. सु. 8 के व्याख्यान में दो दिन बाद आ रहे प्रभुमहावीर परमात्मा के केवल ज्ञान दिवस तथा शासन स्थापना के दिन की सापेक्ष रीति से महत्ता समझाकर श्री वीतराग़परमात्मा के शापन के प्रति वफादारी के महत्व को समझाया । प्रभुशासन की श्रद्धा के पांव को ढीला करने वाले तत्व उत्सूत्रषियों के परिचय आदि के सम्बन्ध में धर्मप्रेमी जनता को सावधान करके तत्व दृष्टि प्रस्फुटित करने सु-साधुओं के चरणों में बैठकर तत्वज्ञान के अभ्यास के साथ धर्मक्रियाओं के व्यवस्थित प्राचरण पर बहुत अधिक भार रखा । वैसाख सु. 14 के व्याख्यान में श्री वर्धमान तप श्रायंबील खाते का महत्व समझाकर " आंबील की तपस्या द्रव्य-भाव से मंगलरूप में श्री संघ को कल्याणकारी है " यह बात जमाकर सेठ पुरुषोतम दास ठाकरशी शाह की उदारता भरे 11001 / के दान से उपाय के पास के मकान को 1500/- में खरीद कर २३६

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