Book Title: Sagar Ke Javaharat
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh

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Page 256
________________ किया । डेढ सो माला के गिनने में 40 माला भी गिनी | माघ सु. पूरिंगमा को समस्त श्री संघ को दो शब्द कहकर सबको खुश किया, सबको यों लगा कि अब पूज्य श्री स्वस्थ हो जायेगे । परन्तु भावी की गति अलग होती है । मृगशिर विद 2 रात्रि प्रतिक्रमण के पश्चार ज्वर बहुत बढ़ गया । विद 4 के रात्रि 10 बजे तक बुखार का जोर बहुत रहा ठंडे पानी के पोते रख कर राहत के प्रयत्न किये । परन्तु बुखार काबू में नहीं आया मृगशिर विद 5 प्रातः बुखार तनिक नरम हुआ परन्तु छाती में पाँव में दर्द बढ़ता गया पू. गच्छाधिपति श्री को चाहे जैसे आभास हो गया कि " अब यह शरीर अवश्य छूटेगा ही । अतः मृगशिर विद 5 प्रातः अपने समस्त साधुत्रों को पास बुलाकर धीमे टूटते शब्दो में प्रभुशासन की वफादारी, आगमिक अभ्यास की महत्ता तथा संयम पालन की सावधानी आदि थोडे में समझाया । माघ विद 6 के सूर्योदय के पश्चात पू. गच्छाधिपति श्री का बुखार घट गया, पॉव और छाती में दर्द ने भी सोम्य रूप लिया परन्तु श्वास क्रिया अव्यस्थित होने लगी । समस्त श्री संघ ने ऊंचे स्वर से नमस्कार महामंत्र का घोष प्रारंभ किया । सम्पूर्ण श्री संघ ने पुण्यदान रूप तप स्वाध्याय यात्रा आदि अंकित कराने लगे । साढ़े बारह बजे खूब ही श्वास बढ़ गया । चतरि मंगलसूत्र 5 झवेर सागर जो म. श्री ने कान में २३५

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