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नुसार पत्र से स्पष्ट होता है :- मुनि श्री भवेर सागर जी, उदयपुर ( यह प्राय: पता लगता है ) श्री अहमदाबाद से लि. मुनि मूलचन्द जी, सुखशाता पढ़ें । श्री उदयपुर मुनि झवेर सागर जी ! तुम्हारा पत्र मृगशिर विद 2 का पहले मिला है । जेठा सूरचंद जी की चिट्ठी के साथ उसका उत्तर लिख नहीं सका । उसका कारण जेठा सूरचंद सारगंद तरफ गये हैं । उनके लौटने की राह देखने से नहीं लिखा जा सका । परन्तु अभी तक वे प्राये नहीं है । इससे यह शिथिलता है ।
आपने "भोयणी की प्रतिष्ठा ऊपर" आने के सम्बन्ध में लिखा वह जाना । परन्तु X Xx प्रतिष्ठा ऊपर हमारी राय में ठीक नहीं आता । कारण निम्नानुसार है- एक तो इस प्रतिष्ठा का कामकाज विद्याशाला वाला तथा स्वैच्छाचारी गण है ( हस्तक) जो अनुभवी नहीं है ।
जेठा सूरचंद ने ऐसे व्यक्तियों के प्रसंग में अभी तक जाने का विचार दीखता नहीं । आत्माराम जी भी इस प्रतिष्ठा पर "भोयणी' की दिशा में आने को नहीं है ऐसा सुना है । प्रतिष्ठा कराने वाले विधिवाला पेथापुर वाला या बड़ोदरा वाले आने का सुना है । इस रीत भाँत को देखते हमारी दृष्टि में ठीक प्राता नहीं । गोकुल जी का धर्म लाभ तुम्हारी तरफ कहां है । उन्होंने अपनी वंदना लिखवाई है । यहां सर्वे साधु-साध्वियाँ सुख -शाता में हैं। संवत 1943 का
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