________________
लिए प्रभु महावीर परमात्मा के निर्वाण-कल्याणक साथ उसका आदर्श सम्बन्ध शास्त्र धार पर समझाकर लोकातर पीत से प्रकाश पर्व के रूप में दोपावली का महत्व समझाकर अज्ञान के अंधकार उसोचने में समर्थ प्रभु शासन की सफल पाराधना रूप दीपोत्सव की आराधना का परम अर्थ समझाया।
तदनुसार पुरुषात्मा यों को षष्ठी तपस्या दो दिन के पौषध तथा रात्रि गणना दत वंदन आदि विधि के साथ दीपावली की लोकोतर आराधना उदयपुर में प्रथमवार की। नूतन वर्ष के मंगल प्रभात में प्राद्य-गणधर श्री गौतम स्वामी जी म. के केवल ज्ञान को दृष्टी में रखकर मोहक क्षयोपशम के लिये सब का सावध होने का जताकर नूतन वर्ष में सबसे पहले पानेवालो ज्ञान पंचमी की आराधना के लिये योग्य तैयारी करने का जताया ।
इस प्रकार ने 1943 का चातुर्मास खूब ही धर्मोल्लास के मध्य पूरा होने को तैयारी में था। तब का. सु. 10 के रोज अहमदाबाद से कोकीभट्ट की पोल में रहते सेठ दीपचंद देवचंद का विनती भरा पत्र पाया कि - "पूज्य श्री गच्छाधिपति की निश्रा में तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय गिरिराज की मंगल यात्रा चतुर्विध श्री संघ के साथ छ"री पालते हुए करने-कराने की देव-गुरुकृपा से भाव जगा है । जिसका मुहूर्त अब दिखाएंगा। परन्तु पू. गच्छाधिपति की शारीरिक अस्वस्थता बराबर जैसी
२१६