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पकड़ ली" की तरह अविरति के फिसलन भरे मार्ग पर पुनः जाना पड़े तो भी पूरा का पूरा विषय कषाय के कीचड़ में फंस जाय इसलिये त्याग-तप- व्रत- नियमों के पच्चकखाण करना तथा आराधना भी तब ही सफल होगी" यह बात भी पूज्य श्री ने समझाई |
इससे दो लड़कियों तथा तीन विधवा बहिनों को सर्वविरति जीवन लेने की उमंग जागृत हुई । घर वालों को किसी प्रकार समझाकर माल के मुहूर्त में ही दीक्षा लेने का दृढ़ संकल्प प्रकट किया । सकल श्री संघ में खूब धर्मोल्लास फैल गया । का. वि. 10 से समस्त श्री संघ की तरफ से भव्य अष्टान्हिका महोत्सव चौगान के देहरा प्रारम्भ हुआ । माघ सु. 2 को भव्य रथयात्रा निकली जिसमें उपधान के तपस्वियों ने उत्तम प्रकार के वस्त्राभूषण पहन कर हाथी, घोड़ा गाड़ी, बग्गी, श्रंगारित इत्यादि में बैठे ।
इस रथयात्रा में सात हाथी, प्रभु जी का भव्य चांदी का रथ, चांदी की पालकी, डंका, कांतल इत्यादि के उपरान्त अगणित कितने ही श्रंगार कराये गये घोड़ा, घोड़ा गाड़ी, बग्गियों आदि से शासन शोभा बहुत बढ़ गई । माघ सु. के प्रातः काल 9-23 के शुभ मुहूर्त में उपधान तप मालारोपण की क्रिया प्रारम्भ हुई । 10 - 37 मिनिट पर पहली माला रु. 22,111 / - सेठ गणेशलाल मुथा के घर में से पहन कर
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