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को स्वीकार करके चातुर्मास की जय बुलवा दी।
पूज्य श्री ने वि. सं. 1942 का चातुर्मास शासन तथा उदयपुर श्री संघ के लाभार्थ तय किया तथा पूज्य श्री की देखरेख के अन्तर्गत देव द्रव्य के हिसाब में आ रही उपेक्षा वति को दूर करने में व्यवस्थापकों को अपूर्व प्रेरणा मिली। चौगान के देहरासरों के व्यवस्थातत्र में कार्यवाहकों की शिथिलता से आगत अव्यवस्था को निवारण करने के लिये पूज्य श्री ने भारी परिश्रम कर पुराना हिसाब व्यवस्थित किया ।इस सारे काम के निपटाने में चातुर्मास प्रारम्भ हो गया । पूज्य श्री ने बैठते चातुर्मास में ही अहमदाबाद से प्राप्त दोनों पत्रों को श्री संघ को पढ़ाये तथा श्री सिद्धाचल महातीर्थ को रक्षा फंड में तन-मन-धन की शक्ति को छिपाये बिना सबको लाभ लेने का पूज्य श्री ने जोर देकर फर्माया । परिणामस्वरूप तीस हजार जैसी रकम थोड़े समय में हो गई। उदयपुर के श्री संघ में इस प्रकार पूज्य श्री ने धर्म ऋण को चुकाने के साथ ही शासन निमित्त दृढ़ अनुराग प्रदर्शित किया।
पूज्य श्री ने इस काम के सम्बन्ध में इच्छा व्यक्त करने के साथ ही भावनगर पू. श्री वृद्धिचन्द जी म. से पत्र द्वारा मार्गदर्शन भी मंगाया दीखता है। क्योंकि सं. 1942 के श्रा. सु. 5 के पत्र में यह विवरण प्राता है ।
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