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"उपधान के बिना महामंत्र की गणना भी नहीं सूझती" को शास्त्रीय बात अनेक उदाहरणों, दृष्टान्तों को समझाकर सकल श्री संघ को प्रोत्साहित करके उपधान तप कराने का मंगल निर्णय कराया । उदयपुर के वृद्धजनों के कहने पर उनकी याद में अब तक उपधान तप नहीं हुआ ऐसे प्रमाण पर धर्म प्रेमी जनता में खूब जागृति आयी। परिणाम में सेठ गिरधर जी कान जी चपलौत ने उपधान तप कराने का लाभ लेने की बात श्री संघ के सामने प्रस्तुत की।
उपधान कराने वाले गिरधर सेठ में इतना अधिक उत्साह था कि पूरा खर्च वे करने, भक्ति का लाभ अधिक मिले, ऐसी पेशकश श्री संघ के सामने की परन्तु श्री संघ ने कहा कि हमारे यहां ऐसा परम उपधान होता है तो हम सबको लाभ मिले यही इच्छनीय है।
यों थोड़ी देर खूब धर्म प्रेम की रस्साकशी जमी। इस प्रसंग में पूज्य श्री ने समझाकर कहा कि- “महानुभावों ! तपस्या करने वालों को भक्ति का "लावा" वास्तव में दुर्लभ है । गिरधर सेठ को उमंग हुआ है तो लाभ लेने दो। पाप श्री संघ के भाइयों वैया वच्च-व्यवस्था-भक्ति आदि से लाभान्वित होना।" श्री संघ के भाइयों ने कहा कि"बापजी ! श्रावक-जीवन में ऐसा दुर्लभ उपधान तप की आराधना आप जसे आगम-प्रज्ञ महापुरुष की निश्रा में फिर
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