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अभी चौमासे में भले ही देर हो। किन्तु न जाने यह बवंडर कब उठे ? और बखेड़ा फैला दे । आप अभी विहार का नाम हो न लो !!! पूज्य श्री ने कहा कि, "महानुभाव ! बात आप लोगों की ठीक है किंतु एक ही गांव में बराबर चातुमसि करना उचित नहीं, आप लोग यह तो समाचार लावें कि देहली वाले पंडित जो अभी आ रहे हैं या चौमासे में ? अभी आते हों तो वैसाख-जेठ में आठ-दस दिन में फैसला हो जाय और मैं भी भीलवाड़ा तरफ जा सकू।।
श्रावकों ने कहा कि- बावजी सा! ये पक्के समाचार तो नहीं मिले हैं, ये समाचार भो खानगी रूप में हमको मिल गये तो हम आपके पास आये हैं । अचानक हमला करने की फिराक में हैं, तो क्या ठिकाना कि कब ये लोग अपने शासन पर आक्रमण कर बैठें। आप तो शास्त्रों के मर्मज्ञ हैं! दुश्मन सिर पर झूम रहा है ! न जाने कब आक्रमण कर दे ? अतः कृपया आप शासन के लाभार्थ विहार का विचार छोड़ दें।
पूज्य श्री ने कहा कि, 'जैसी क्षेत्र स्पर्शना" यो कहकर विहार स्थगित रखा । जेठ विद लगभग में खूब धूमधाम से आर्य समाजियों ने दिल्ली के पंडितजी का नगर प्रवेश कराकर राजमहल के चौक में भव्य मंडप बांधकर पंडित जी का प्रवचन प्रारम्भ करवाया।
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