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तब स्वीकार करके दीक्षार्थी के रुप में संयमी वैराग्यवत जीवन का पूर्वाभ्यास करने लगे । लोग भो दोक्षार्थी की ऐसी चढ़ती भवना तथा छूट से मनवांछित पदार्थों के सुलभ होने पर भी त्याग, व्रतनियम, पच्चक्खाण. अभिग्रह आदि को धारण कर अपने स्वयं को काबू में रखने के संघर्षरत दीक्षार्थियों की उदात्त भावना खुले हृदय से अनर्गल अनुमोदन करने लगे ।
इस अवधि में पूज्य श्री को समाचार मिला कि पूज्य गच्छाधिपति मूलचंद जी म. के खास प्रीति - पात्र पंजाब देश में जिन धर्म की प्रबल प्रभावना करने वाले पू. श्री आत्माराम जो म. दिल्ली की तरफ पधारे है तथा गुजरात की दिशा में पधारने को हैं । तो दिल्ली से उदयपुर होकर पधारें तो केसरिया जी कोयात्रा हो जाय साथ ही उदयपुर में जिन शासन की जबरदस्त प्रभावना हो, क्योंकि स्थानकवासी साधुपने में बाईस वर्षं रहकर प्रबल विद्वान तथा प्रतिष्ठापात्र होने पर भी सत्य-तत्व को संयुति होने पर भी उन्होने अठारह साधुओं के साथ संवेगी-दीक्षा स्वीकार कर प्रभुशासन की स्वामीभक्ति व्यक्त की
ऐसे महापुरुष उदयपुर में पधारें तो यहां की जनता को परमात्मा के शासन का दृढ़ विश्वास हो जिससे उदयपुर श्री
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