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"वायणा' प्रारम्भ हुए ।
रोज प्रातः काल " वायणा" की शुरुआत हो तब दीक्षार्थी बहिने अपने अपने सम्बन्धी तथा श्री संघ के भाई-बहिन के साथ पूज्य श्री के पास वासक्षेप डलवाकर मांगलिक सुनने प्राते तब उत्तम श्रीफल द्वारा " गेंहूली" करके दीक्षार्थी वासक्षेप से ज्ञानपूजा करें तथा वंदना करके "इच्छाकारी भगवन पसाय करे हितशिक्षा पसाय कीजियेगा कहकर कुछ समय ग्रात्म हितकर विषय में समझाने की प्रार्थना करती थी । क्योंकि शासन - प्रभावना के उद्देश्य से धुरन्धर संयमी आत्माओं के बहुत मान की दृष्टि से ' पगला " करने का कार्यक्रम प्रातः नो बजे से सांझ तक चलता है । व्याख्यान का लाभ न मिले इससे दीक्षार्थी बहिने प्रातः पूज्य श्री के पास मांगलिक सुनकर वासक्षेप के समय हितशिक्षा की मांगरणी करती ।
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पूज्य श्री भी दीक्षार्थियों को उद्बोधन करते हुए महत्व को विचार जागृति तरफ अंगुली निर्देश करते कहते कि ये वाय क्या है ? वाचना शब्द का अपभ्रंश वायरणा दिखता है । परन्तु यहां वाचना लेने देने की बात तो कोई नहीं है तो वायणा शब्द का अर्थ ही बहुत गंभीर रहस्य की सूचना करता है । वह यह है कि समझपूर्वक त्यागवैराग्य के चढ़ते परिणामों के बल पर संसार के मोहक
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